अर्थतंत्र की गत न्यारी; साबुन-शैंपू-डिटर्जेंट बिक नहीं रहे और महंगी गाड़ियों-आईफोन के लिए है कतारें!

अर्थतंत्र की गत न्यारी; साबुन-शैंपू-डिटर्जेंट बिक नहीं रहे और महंगी गाड़ियों-आईफोन के लिए है कतारें!

कोरोना की तीसरी लहर का असर बाजारों पर, मात्र आवश्यक सामग्री पर पैसे खर्च करना चाहते है मध्यमवर्गीय परिवार

आज कल भारतीय अर्थतंत्र में अजीबोगरीब माहौल देखा जा रहा है। बड़ी गाड़ियों और कारों की मांग इतनी बढ़ गयी है कि डिलीवरी के लिए लंबी प्रतीक्षासूची यानी वेटिंगलिस्ट देखी जा रही है। जरुरी साधन के निर्माण और आयत की कमी के कारण कंपनी के पास सात लाख से अधिक ग्राहक एडवांस जमा कर अपने नंबर की प्रतीक्षा कर रहे है। दूसरी और बीते दस सालों में टू व्हीलर की मांग में कमी देखी गई। मोबाइल की बात करें तो एक तरफ मोबाइल की मांग में हलकी वृद्धि देखी गई पर अक्टूबर और नवंबर में आईफोन की जबरजस्त बिक्री हुई है। रियल स्टेट में भी ऐसा ही हाल रहा। एक तरफ जहाँ जमीन, मकान और ऑफिस की मांग बढ़ी है वहीं गुड्स की मांग बहुत सामान्य मात्र में बढ़ी है।
फ़ास्ट मूविंग उपभोक्ता सामान जैसे साबुन, शैंपू, एल्डे क्रीम, फेसवॉश, पैकेट में बिकने वाले बिस्कुट, अनाज, आटा आदि कुछ ऐसे आइटम हैं जिनकी मांग में गिरावट देखी गई है। ये कंपनियां बिक्री बनाए रखने के लिए संघर्ष कर रही हैं।
शेयर बाजार में निफ्टी एफएमसीजी इंडेक्स एक साल के उच्च स्तर (अक्टूबर 2021) के बाद 12 गिर गया। एमएफसीजी के सामने एक बड़ी चुनौती ये भी है कि आवश्यक सामग्री के कच्चा मालों की कीमतों में लगातार बढ़ोत्तरी देखी जा रही है। ऐसे में बढती कीमतों के बीच कंपनी अपनी कीमत बढ़ाने के लिए मजबूर है। ऐसे में ग्राहकों को ये जीवनयापन के आवश्यक चीजें अधिक कीमत पर मिलेंगी। ऐसे में लॉकडाउन और कोरोना के कारण जहाँ लोगों की नौकरियां कम हुई है वहीं आवश्यक आवश्यकता वाली चीजों की कीमतों में बढ़ोत्तरी चिंता का विषय है। ऐसे में लोग मात्र जरुरी साधन खरीद रहे है। इस कारण भले ही कंपनी की बिक्री तो बढ़ रही है पर उसके लाभ में कमी देखी जा रही है। इसका असर कंपनी के शेयर पर पड़ रहा है।
एफएमसीजी क्षेत्र की सात बढ़ी कंपनी हिंदुस्तान लीवर, आईटीसी, गोदरेज, टाटा कंजूमर, नेस्ले, ब्रितानिया और इमामी की बिक्री में बीते महीनों में कमी और मुनाफे में भी कमी देखी गयी। देश के 75 लाख जितनी दुकानों से डेटा एकत्र करने वाली कंपनी विजोमा के अनुसार जनवरी महीने में देश मे कोरोना की तीसरी लहर का आतंक था। हालांकि ये लहर बाकी दोनों लहरों की अपेक्षा कम खतरनाक रही पर इस दौरान भी राशन की बिक्री में कमी देखी गई। दिसंबर की अपेक्षा जनवरी में घरोपयोगी चीज-वस्तुओं में 5.3 प्रतिशत कमी देखी गई। विजोमा के अनुसार कुछ प्रोडक्ट ऐसे भी है जिसकी बिक्री में मासिक नहीं बल्कि सालाना स्तर कर कमी देखी गई है। सौंदर्य प्रसाधन की चीजें की बिक्री में जनवरी में 9.1% तक कमी देखी गई। घर के सजावट के लिए उपयोगी चीज वस्तुओं में 22.4 प्रतिशत जितनी और बेकरी उत्पादों में लगभग 14% कम बिक्री देखी जा रही। वर्षीय स्तरों पर बात करें तो इन उत्पादों की बिक्री में क्रमशः 8.1%, 39.5% और 41.6% की कमी देखी गई है। ये स्पष्ट दिखा रहा कि कोरोना के संकट काल में मध्यवर्गीय लोग मात्र आवश्यक चीजों पर खर्च कर रहे हैं।
साथ ही इस डेटा में ये भी पता चला है कि कोरोना की तीसरी लहर का असर ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहर के बाजारों पर ज्यादा देखा गया। इस दौरान ग्रामीण बाजारों में जहां 7% जितनी कम बिक्री जबकि शहरी बाजारों में लगभग 15% की कमी देखी गई। देश के तमाम राज्यों की बात करें तो कोरोना से सबसे अधिक प्रभावी राज्य के रूप में  गुजरात का नाम सामने आया है।

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