एज्युकेशन लोन लेकर पढ़ाई करने वाले छात्रों की हालत पतली, किश्तें भरना मुश्किल

एज्युकेशन लोन लेकर पढ़ाई करने वाले छात्रों की हालत पतली, किश्तें भरना मुश्किल

कोरोना काल में नौकरी नहीं मिलने के कारण नहीं हो सक रही है रिकवरी

किसी भी तरह की गेरंटी के बिना एज्युकेशन लोन देना अब बैंको के लिए नुकसान का सौदा साबित हो रहा है। कोरोना के बाद तो यह परिस्थिति और भी ज्यादा बिगड़ गई है। उच्च अभ्यास के लिए जिन छात्रों को बैंको ने लोन दी है, वह अब नियत समय में लोन के हफ्ते नहीं भर सक रहे है। इसके कारण बैंक भी अब एज्युकेशनल लोन से अधिक पर्सनल लोन पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित कर रही है। 
कोरोना काल में बढ़ी बैंको की एनपीए में है एज्यूकेशन लोन का बड़ा हाथ
कोरोना काल में बैंको की एनपीए बढ्ने का मुख्य कारण एज्युकेशन लोन है। अधिकतर विद्यार्थी उच्च अभ्यास करने के बाद नौकरी ढूंढते है। बैंको का नियम यह है की ग्रेज्युएशन पूर्ण करने दो साल के बाद उन्हें एज्युकेशन लोन के हफ्ते भी भरने होते है। पर इस दौरान उसका व्याज भरते रहना पड़ता है। सरकारी बैंको के लिए यह एज्युकेशन लोन अब नुकसान का सौदा बन रही है। 
9.55 प्रतिशत लोन बनी एनपीए
बैंको ने अब तक जो एज्युकेशन लोन दी है, उसमें से 9.55 प्रतिशत लोन अब एनपीए बन चुकी है। इसके अलावा अब तक पैसे लेने हो ऐसे अकाउंट की संख्या 3.66 लाख है। इन सभी अकाउंट में बैंको के 8857 करोड़ रुपए फंसे है, जिसमें से गुजरात के ही 2000 से अधिक है। बैंकिंग क्षेत्र से जुड़े एक उच्च अधिकारी का कहना है की लोन वापिस ना आने का सबसे बड़ा कारण कोरोनाकाल में लोगो की नौकरी चली जाना और आय में कमी होना है। 
देश भर में दी गई 67000 करोड़ की एज्यूकेशन लोन
देश एक अलग अलग राज्यों में पिछले एक साल में बैंकों ने 67 हजार करोड़ रुपए की एज्युकेशन लोन दी थी। इन सबमें गुजरात में एज्युकेशन लोन का प्रमाण 6500 करोड़ जितना है। चार लाख तक की रकम के लिए बैंक द्वारा कोई भी गेरंटी की मांग नहीं की जाती, पर उसके बाद बैंक द्वारा गेरंटी की मांग की जाती है। 
आंकड़ो पर ध्यान दे तो बैंको के लोन एनपीए में एज्युकेशन लोन सबसे ज्यादा रही है। हाउसिंग सेकतार से लेकर कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और रिटेल लोन की एनपीए 1.25 प्रतिशत से 6.91 प्रतिशत रही ही। 
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