सूरत : श्मशानों घाटों में लकड़ियां कम पड़ने पर गन्ने की बगास का उपयोग शुरु हुआ

सूरत : श्मशानों घाटों में लकड़ियां कम पड़ने पर गन्ने की बगास का उपयोग शुरु हुआ

शुगर फ़ेक्टरी के संचालको मुफ्त में गन्ने की बगास देने की घोषणा की

सूरत के श्मशानों में कोरोना के कारण हर दिन काई लाशें सामने आ रही है। हर दिन आ रही लाशों के लगातार अंतिम संस्कार के कारण श्मशानों में लकड़ियाँ भी कम पड़ने लगी है। जिसके चलते अब गांवों में आए श्मशानों में लकड़ी कम पड़ने के कारण अब गन्ने की बगास का इस्तेमाल शुरू करने की नौबत आ चुकी है। 
विस्तृत जानकारी के अनुसार, सूरत में कोरोना विस्फोट के कारण लगातार मृत्यु आंक बढ़ता जा रहा है। कोरोना के अलावा कुदरती तरीके से मृत्यु के कारण श्मशानों में अंतिम संस्कार के लिए कई लाशे आ रही है। जिसके कारण कई श्मशानों में भी घंटो का वेटिंग लिस्ट पड़ा हुआ है। लाशों को जलाने के लिए सुखी लकड़ियों के साथ-साथ गीली लकड़ियों का इस्तेमाल करने की नौबत भी आन पड़ी है। इस कमी को दूर करने के लिए गाँव वालों द्वारा एक नया प्रयोग किया गया है। 
प्रतिकात्मक तस्वीर
गाँव वालों ने गन्ने की बगास का इस्तेमाल भी अंतिम संस्कार में किया जा रहा है। गन्ने की बगास एक कुदरती ज्वलनशील पदार्थ है। जिसे गीली लकड़ियों के बीच फैला दिया जाता है। जिससे की गीली लकड़ियाँ भी जल्द ही जलने लगती है। ओलपाड सहित कई इलाकों में इस तरह से बगास का इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे की अंतिम विधि में होने वाली तकलीफ़ों में काफी कमी आई है। 
गन्ने की यह बगास चीनी बनाते समय बाय प्रोडक्ट के तौर पर मिलती है। जो बाज़ारों में 900 रुपए टन की कीमत से बिकती है। पर फिलहाल महामारी के इस समय में शुगर फेक्टरी के मालिकों ने गन्ने की यह बगास मुफ्त में देने की घोषणा की है।