गुजरात सरकार के कड़े तेवर; दुष्कर्म के आरोपियों के फोटो-सजा की जानकारी वाले होर्डिंग लगेंगे

गुजरात सरकार के कड़े तेवर; दुष्कर्म के आरोपियों के फोटो-सजा की जानकारी वाले होर्डिंग लगेंगे

दुष्कर्म मामले में सूरत की अदालत ने सिर्फ 33 दिनों में मुकदमा पूरा कर 38 वर्षीय आरोपी को मौत की सजा सुनाई

सूरत में दिवाली के समय हुए एक दुष्कर्म मामले में सूरत की अदालत ने सिर्फ 33 दिनों में मुकदमा पूरा कर 38 वर्षीय आरोपी को मौत की सजा सुनाते हुए बच्ची के माता-पिता को 20 लाख रुपये देने का आदेश दिया। ये मामला अपने आप में एक उदाहरण है कि कैसे ऐसे मामलों पर त्वरित कार्यवाही की जा सकती है।
इस मामले में आरोपी गुड्डू यादव ने अश्लील वीडियो देखने के बाद बच्ची के साथ बर्बरतापूर्ण हरकत की थी। ऐसे में भविष्य में एक मिसाल कायम करने के लिए राज्य सरकार ने राज्य में ऐसे मामलों में आरोपियों के होर्डिंग लगाने का फैसला किया है जिसमें आरोपियों की तस्वीर सहित अपराधियों का विवरण और उन्हें मिली सजा का विवरण दिखाया जायेगा। राज्य में मासूम बच्चियों के बलात्कार के मामले को गंभीरता से लेने और दोषियों को सख्त और तत्काल सजा दिलाने में सफल होने के बाद से पुलिस का मनोबल बढ़ा है। इस बारे में गृह मंत्री हर्ष सांघवी ने कहा कि दुष्कर्म के मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों ने प्रभावी कार्रवाई की है। निकट भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए राज्य सरकार महज एक महीने में एक विशेष कार्य योजना लाने जा रही है। दुष्कर्म के ज्यादातर मामलों में आरोपियों ने अश्लील फिल्में देखकर इस तरह के जघन्य कृत्य किए हैं ऐसे में शहरों में मोबाइल की दुकानों से अश्लील वीडियो या फिल्में डाउनलोड करने वालों पर पुलिस की पैनी नजर रखी जाएगी।
भास्कर की रिपोर्ट के अनुसार सूरत के पांडेसरा-वडोद में ढाई साल की मासूम से रेप और हत्या करने वाले गुड्डू यादव को पोक्सो कोर्ट के जज प्रकाश चंद्र कला ने फांसी की सजा सुनाई है। पिछले ढाई साल में एक लड़की से छेड़छाड़ के मामले में कोर्ट ने एक और आरोपी को मौत की सजा सुनाई है। चार नवंबर को दो बच्चों के पिता गुड्डू यादव ने ब्लू फिल्म देखकर बच्ची का अपहरण कर उसके साथ दुष्कर्म किया और उसकी हत्या कर दी। लड़की का शव दो दिन बाद मिला और तीसरे दिन आरोपी यादव को गिरफ्तार कर लिया गया। इस मामले में 7 दिनों में चार्जशीट दाखिल की गई और 6 चरणों में ट्रायल पूरा किया गया।
आपको बता दें कि आरोपियों की जानकारी सार्वजानिक करने वाली घटना पहली बार नहीं होने जा रही। इससे पहले उत्तर प्रदेश में ऐसा हो चुका है। नागरिकता अनुसंधान अधिनियम के विरोध में मार्च 2020 में उत्तर प्रदेश में हिंसा भड़क उठी। राज्य सरकार ने हिंसा के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के आरोपितों के पोस्टर लगाए थे। हालांकि बाद में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सभी पोस्टरों को हटाने का आदेश दिया था।