लघु कहानी : चिनगारी

लघु कहानी : चिनगारी

रवीन्द्र पारेख

'दादी, यह क्या है?' सेतु दिमाग चाट रहा था। आँसू पोंछते हुए दादी बोली, 'चैक है। '
'वो क्या होता है?'
दादी चिढ़ कर बोली, 'तेरा बाप अस्पताल में जल गया उसके पैसे...' 
फूट पड़ी।
उसको चैक कागज़ के टुकड़े से अधिक नहीं लगा, पर  चाहते हुए भी वह उसे फेंक न सकी। पूरी जिंदगी उसका बेटा इतनी रकम के लिए तरस गया था, और जब वो नहीं रहा तब ...
बीमारी बढ़ गई तब उस को वेंटिलेटर पर लिया गया था। उन दिनों दादी यही सोचती थीं कि इतने पैसे कहाँ से ...
पर उसका दोस्त बोला था, 'माई, आप फिक्र न करें। जुगाड़ हो जाएगा।'
और जुगाड़ ऐसा हुआ कि बेटे को जलाने तक की जरूरत नहीं रही।
रात को कहीं से लपटें उठी और पूरा आईसीयू राख का ढ़ेर हो गया। कईं जानें गईं।
वो तो अच्छा हुआ लोगों ने दो चार जानें बचा लीं जिसमें उसकी बहु भी थीं। डॉक्टर कह रहे थे कि वह अब ठीक है। भगवान करें वो लौट आये तो सेतु को सौंप कर गंगा नहा ले।
छोटा था, शरारती भी था, पर इन दिनों न मालूम क्यों, सेतु बहुत ही शांत रहा था।
दादी ने उसे पुचकारते हुए चैक थमा दिया। चैक को आगे पीछे घूमाते हुए वह बोला, 'ये पैसे सब को दिये?' 
'नहीं जो गुज़र गये उनको...'
'तब तो...' कुछ सोचते हुए बोला, 'मम्मी जाती तो उसके भी... पैसे -'
चांटा रसीद कर दिया दादीने और रोते हुए सेतु को गले...
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