Happy rakshabandhan to all #Krishn and #Krishna.
— Abhishek Sharma (@TheSharmaG) August 22, 2021
May every bother, friend be like Bhagwan Shrikrishna and every sister/ friend like Draupadi.
आप सभी को रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं।
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रक्षाबंधन : जानिए क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार और किसने बंधी थी पहली राखी
By Loktej
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हिन्दू पौराणिक मान्यताओं की माने तो इस त्यौहार से जुड़ी हुई है कई कहानियां
आज देश भर में ‘भाई-बहन’ के पवित्र और अद्भुत प्रेम का त्यौहार ‘रक्षा बंधन’ बड़ी ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। जीवन में मौजूद विभिन्न रिश्तों में भाई-बहन का प्यार सबसे अनोखा होता है। किसी भी भाई के लिए सबसे पहला दोस्त उसकी बहन और किसी बहन के लिए सबसे पहला दोस्त उसका भाई ही होता है। रक्षा बंधन इसी अनोखे रिश्ते का प्रतिक है। रक्षाबंधन का त्योसहार सावन के महीने में पूर्णिमा को मनाया जाता है। रक्षा बंधन दो शब्दों को मिलाकर बनता है, रक्षा और बंधन। जिसका मतलब एक ऐसा बंधन जो रक्षा करता हो। रक्षा बंधन भाई-बहन का प्रतीक माना जाता है। रक्षा बंधन भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को जताता है और घर में खुशिया लेकर आता है। इसके अलावा यह त्योहार भाईयों को याद दिलाता है कि उन्हें अपनी बहनों की रक्षा करनी चाहिए।
लेकिन क्या आप ये जानते है कि रक्षाबंधन आखिर क्यों मनाया जाता है और इस दिन का क्या महत्व है? हिन्दू पौराणिक मान्यताओं की माने तो इस त्यौहार से कई कहानियां जुड़ी हुई है। चलिए जानते है रक्षाबंधन से जुड़ी कथाएं-
भगवान श्रीकृष्ण और कृष्णा (द्रौपदी) की कथा
रक्षाबंधन के बारे में बात करें तो सबसे पहले इस कथा का जिक्र आता है। महाभारत के अनुसार शिशुपाल वध करते समय श्री कृष्ण जी की तर्जनी उंगली कट गई थी। यह देखते ही द्रोपदी कृष्ण जी के पास दौड़कर पहुंची और अपनी साड़ी से एक टुकड़ा फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांध दी। इस दिन श्रावण पूर्णिमा थी। इसके बाद कृष्ण ने अपनी सखा और बहन को उसकी रक्षा का वचन दिया जिसे उन्होंने पूरा भी किया। आगे जब द्रौपती का चीर हरण किया जाने लगा तो कृष्ण ने चीर बढ़ा कर अपनी बहन द्रोपदी की रक्षा की थी।
माता लक्ष्मी और राजा बलि की कथा
रक्षाबंधन से जुडी एक कथा भगवान विष्णु के वामन अवतार से भी जुड़ी है। भगवान विष्णु ने जब वामन अवतार लेकर असुरों के राजा बलि से तीन पग भूमि का दान मांगकर पहले ही पग में धरती, दुसरे में आकाश नाप ली तो बलि भगवान को पहचान गये और भगवान विष्णु को प्रणाम करके अगला पग अपने शीश पर रखने के लिए कहा। इस पर विष्णु भगवान बलि पर प्रसन्न हुए और वरदान मांगने को कहा। असुर राज बलि ने वरदान में उनसे अपने द्वार पर ही खड़े रहने का वर मांग लिया। इस प्रकार भगवान विष्णु अपने ही वरदान में फंस गए। ऐसे में माता लक्ष्मी ने नारद मुनि की सलाह पर असुर राज बलि को राखी बांधी और उपहार के रूप में भगवान विष्णु को मांग लिया।
देवासुर संग्राम से जुडी कथा
हिन्दू पुराणों के अनुसार देवासुर संग्राम 10 साल से अधिक समय तक चला था। इस संग्राम में कई देवता पराजित हो गये थे। युद्ध के दौरान ही गुरू देव बृहस्पति ने देवताओं को एक आदेश दिया था जिसके अनुसार इंद्राणियों ने भगवान इंद्र को रक्षासूत्र बांधा था। इसके बाद देवताओं में बहनों की नयी ताकत का संचार हुआ था और उन्होंने भगवान इंद्र की अगुवाई में राक्षासों का संहार किया था। इसके बाद धरती पर रक्षाबंधन का पवित्र पर्व मनाया जाने लगा है जो आज भी जारी है।
हिमायुं और रानी कर्णावती की कहानी
इन सबके साथ साथ एक कथा इतिहास से भी जुड़ी हुई है। इतिहासकार बताते हैं कि राजस्थान में राजपूत जब लड़ाई पर जाते थे, तब महिलाएं जीत के विश्वास के साथ उनके माथे पर कुमकुम तिलक लगाती थीं और हाथ में रेशमी धागे के रूप में रक्षा सूत्र बांधती थीं। मध्य काल में राजपूत और मुस्लिमों के बीच संघर्ष चल रहा था। रानी कर्णावती चितौड़ के राजा की विधवा थीं। रानी कर्णावती को जब बहादुरशाह द्वारा मेवाड़ पर हमला करने की खबर मिली, तो वह घबरा गईं। कर्णावती, बहादुरशाह से युद्ध कर पाने में सक्षम नहीं थीं। लिहाजा, उन्होंाने प्रजा की सुरक्षा के लिए हुमायूं को राखी भेजा। तब हुमायूं ने राखी की लाज रखी और मेवाड़ पहुंचकर बहादुरशाह के खिलाफ युद्ध लड़ा।
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