गुजरात में कोरोना का एक साल; कतारें तब भी थीं, कतारें अब भी हैं लेकिन मायने बदल गये!

गुजरात में कोरोना का एक साल; कतारें तब भी थीं, कतारें अब भी हैं लेकिन मायने बदल गये!

पहले राशन और प्रवासी श्रमिकों की कतारें होती थीं, अब इलाज के लिये लोग खड़े

मार्च 2020 और मार्च 2021 - एक साल गुजर गया लेकिन लगता है जहां तक कोरोना महामारी का संबंध है, हम घूम फिर कर वहीं आ खड़े हुए हैं। या यूं कह लीजिये एक साल में हालात बद से बदतम होते दिख रहे हैं। चंद महीनों पहले जब प्रदेश में निकाय चुनाव थे, तब किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि चुनाव खतम होते-होते प्रदेश में महामारी का संकट ऐसा गहन हो जायेगा। 
आज पूरे प्रदेश में कारोना महामारी ने ऐसा प्रचंट रूप दिखाया है कि लोग हक्के-बक्के रह गये हैं। प्रशासन के हाथों से भी मानो बाजी खिसकती जा रही है। दिखावटी कामकाज होता दिख रहा है। कागजों पर सब अच्छा सी का राग अलापा जा रहा है, लेकिन धरातल पर देखें तो लोगों की कतारें अपनी आवश्यकता की पूर्ति के लिये दिख रही हैं। 
पिछले साल कोरोना महामरी के कारण लॉकडाउन और अनलॉक के दौर में लोग राशन की दुकानों के आगे कतार में खड़े होते, या नौकरी गंवाने के बाद वतन की ओर कूच करते रेलवे और बस स्टेशनों पर लोग कतार में खड़े दिखे थे या फिर सरकारी और समाजिक संगठनों द्वारा खोली गई भोजन शालाओं के आगे पेट की आग बुझाते लोगों को लाइनों में खड़े होते देखा था। 
लेकिन अब 2021 का मार्च और अप्रेल महीना विकराल संकट का परिचायक बन सामने खड़ा है। इस बार लोग राशन, भोजन या बसों-रेलों के लिये नहीं अपितु अपने बीमार परिजनों के लिये अस्पतालों और दवा की दुकानों के आगे कतार बद्ध नजर आ रहे हैं। इतना ही नहीं, अब तो स्मशान गृह में खो चुके स्वजनों के अंतिम संस्कार के लिये भी लाइन में लग कर टोकन लेने की नौबत आ गई है। 
एक साल में सबकुछ बदल गया है। या तो हम कोरोना की महामारी की भयावहता को परखने में मात खा गये या फिर प्रशासन ने लापरवाही बरतते हुए दीवाली के बाद कोरोना के मामलों में आई कमी के बाद स्वयं लापरवाही बरत ली और आने वाले समय को भांप नहीं पाया। खैर, उम्मीद करते हैं लोगों को इन कतारों से निजात मिलेगी और एक बार फिर लोग सामान्य जीवन जीवन व्यतीत कर पायेंगे।
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