मां की मजबूरी; अपने नवजात को न स्पर्श कर सही, न तीन महीनों तक स्तनपान करा पाई!

मां की मजबूरी; अपने नवजात को न स्पर्श कर सही, न तीन महीनों तक स्तनपान करा पाई!

लोगों की सलामती के लिए दिन-रात एक करने वाली महिला कॉन्स्टेबल पुत्र को रौता देखकर रो पड़ती, पर संतान की सुरक्षा के लिए रखा हुआ था खुद से दूर

कोरोना वायरस के समय में जहां एक तरफ सभी घर में कैद थे और किसी को भी घर के बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। ऐसे में फ्रंटलाइन वर्कर्स ने रात-दिन अपने घरों से दूर रहकर अपनी ज़िम्मेदारी निभाई थी। कई बार तो ऐसा भी हुआ की कई दिनों तक इन लोगों ने अपने घर के सदस्यों की शक्ल तक नहीं देखी थी। आज हम बात करने जा रहे है एक ऐसे ही फ्रंटलाइन वोरियर और पुलिसकर्मी की जिसने कोरोना के कारण अपने नवजात शिशु को अपना स्तनपान भी ना करवा सकी। बालक के सामने होने के बावजूद वह उसे छु नहीं सकती थी। 
छाया परमार नाम की यह महिला पुलिस कर्मी अहमदाबाद के पालड़ी पुलिस स्टेशन में कॉन्स्टेबल के तौर पर काम करते है। एक सामान्य परिवार में से आने वाली छाया के पति, पुत्र और सास-ससुर बहेरामपुर के एक गहर में रहते है। जब कोरोना काल शुरू हुआ तो उन्होंने सुबह के 8 से शाम के 8 बजे तक भी ड्यूटी की थी। उस समय कोरोना हॉटस्पॉट बने हुये जमालपुर से आने वाले लोगों को रोकना और जुहापूरा से जमालपुर तरफ जाने से रोकना उनकी मुख्य ज़िम्मेदारी थी। इस दौरान वह कई लोगों के संपर्क में आई थी। इसलिए वह जब भी घर आती तो उन्हें परिवार और पुत्र की चिंता होती थी। 
अपने पुत्र को बचाने के लिए उन्होंने अपने सामने वाला घर भाड़े पर ले लिया। जहां उनका परिवार और उनका पुत्र रहता था। जबकि वह घर में अकेली रहती थी। बालक को मिलने का मन करने पर भी वह उससे तुरंत नहीं मिल पाती थी। ड्यूटी पर से आने के बाद स्नान करने के बाद और संपूर्ण रूप से सैनीटाइज़ होने के बाद ही वह अपने संतान से मिलती। 
छाया कहती है कि कई बार जब वह काम पर वापिस आती तो उसे देखकर उसका बालक रोने लगता। जिसे देखकर वह खुद भी रोने लगती। मात्र आठ महीने के बालक को उन्होंने छोड़ रखा था, ताकि वह सलामत रहे। बालक को इस उम्र में भी स्तनपान की जरूरत होती थी, पर वह उसे वो भी नहीं दे सकती थी।