मोरबी : जिस उम्र में लोग सब भूलने लगते है, इन्होंने पढ़ना-लिखना सीखा

मोरबी : जिस उम्र में लोग सब भूलने लगते है, इन्होंने पढ़ना-लिखना सीखा

82 वर्ष की में हरिभजन के लिए सीखा पढ़ना-लिखना

"सीखने की कोई उम्र नहीं होती" इस कहावत को मोरबी के रावापार रोड पर रहने वाले मूल भड़ियाड गांव निवासी 82 वर्षीय ने सार्थक सिद्ध कर दिखाया है। छोटी उम्र में पढ़ाई-लिखाई नहीं करने वाली बुजुर्ग ने इस उम्र में a, b, c, d लिखकर अक्षरों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है। मोरबी के अमृत बा ने धार्मिक रुचि लेकर पहले पढ़ना और फिर लिखना शुरू किया।
जानकारी के अनुसार मोरबी के भदियाड गांव निवासी और वर्तमान में मोरबी के रावापर रोड पर रहने वाली, गिरधरभाई अड्रोजा की पत्नी अमृतबेन गिरधरभाई अड्रोजा 82 वर्ष की है। वह बचपन में नहीं पढ़ पाई थी, इसलिए वह पढ़-लिख नहीं सकती थी। हालांकि, साल 2017 में उनके मन में यह विचार आया कि क्या करना है, बस बैठकर पढ़ना-लिखना है। तो फिर उन्होंने मन लगाकर पढ़ाई शुरू की। उन्होंने पहले किंडरगार्टन की तरह ए, बी, सी, डी लिखकर वर्णमाला सीखना शुरू किया और बाद में अक्षर ज्ञान और बरखाड़ी से शुरुआत की। केवल छह महीनों में, उन्होंने साक्षरता हासिल कर ली थी।
इस बारे में खुद बा कहती है कि "एक बार मुझे यह विचार आया कि अब क्या करना है, इस उम्र में भगवान का नाम लेने का सोचा। लेकिन भगवान का नाम लेने के लिए पढ़ने-लिखने में सक्षम होना जरूरी है। इसलिए मैंने थोड़ा लिखना शुरू किया और बाद में पढ़ना शुरू किया। मैंने पढ़ना शुरू किया, इसलिए मैंने धीरे-धीरे भगवान की किताबें पढ़ना शुरू किया। उसके बाद मैंने लिखना शुरू किया। मैं प्रतिदिन मंत्र 'ॐ नमः भगवते वासुदेवाय' लिखती हूं। मैं पूरे दिन में दो पन्ने भरकर जप लिख रही हूँ, दो साल से ऐसे ही मंत्र लिख रही हूँ। इसके अलावा मुझे नहीं पता कि कैसे लिखना है। अब मुझे बाकी सब कुछ लिखना सीखना है। बता दें कि इस उम्र में पढ़ने-लिखने के पीछे उनके पति का अहम योगदान है। पहले वो लिखने के लिए एक टेबल लाए, फिर पढ़ने के बा के लिए एक मोबाइल दिया।