मद्रास : हाई कोर्ट की दो टूक, युवाओं को समझना होगा कि शादी कोई समझौता या करार नहीं!

पति के पास पत्नी के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने से लेकर अन्य परिस्थिति में मदद के लिए भी घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कोई प्रावधान नहीं है।

हिन्दू समाज में शादी 16 संस्कारों में से एक संस्कार हैं और इसका जीवन में बहुत महत्व हैं। इस्क्व बाद भी आए दिन शादी से जुड़े ऐसे कई मामले सामने आते रहेते हैं जहाँ पति और पत्नी के बीच किसी न किसी कारण अलगाव होता हैं। ऐसे ही एक मामले की सुनवाई करते हुए मद्रास हाई कोर्ट ने युवा दंपतियों को चेतावनीदी कि पति एवं पत्नी के साझा प्रयास से ही सुखी और सफल जीवन चलता हैं और ऐसे में दोनों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि ‘अहंकार’ एवं ‘ असहिष्णुता’ जूते की तरह हैं जिन्हें घर में कदम रखने से पहले बाहर ही छोड़ देना चाहिए, अन्यथा उनके बच्चों की जिंदगी दयनीय हो जाती हैं।
साथ ही जस्टिस एस वैद्यनाथन ने युवाओं को यह भी सलाह दिया कि शादी-विवाह कोई अनुबंध या करार नहीं बल्कि एकपवित्र बंधन है। हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 में लिव-इन-रिलेशनशिप को मंजूरी देने से पवित्र बंधन का कोई अर्थ नहीं रह गया है। साथ ही अदालत ने माना कि पति के पास पत्नी के खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराने से लेकर अन्य परिस्थिति में मदद के लिए भी घरेलू हिंसा अधिनियम जैसा कोई प्रावधान नहीं है।
आपको बता दें कि जस्टिस ने याचिकाकर्ता डॉ पी शशिकुमार की याचिका को मंजूर करते हुए यह टिप्पणी की। दरअसल याचिकाकर्ता डॉ पी शशिकुमार ने पत्नी की शिकायत के आधार पर उन्हें पशुपालन एवं पशुविज्ञान निदेशक के पद से हटाये जाने वाले 18 फरवरी, 2020 के आदेश को चुनौती दी थी और उन्हें सभी लाभों के साथ पद पर बहाल करने का अनुरोध किया था। डॉ पी शशिकुमार का कहना हैं कि उन्हें इस आधार पर सेवा से हटा दिया गया कि वह घरेलू मुद्दे में संलिप्त थे और उनके विरूद्ध उनकी पूर्व पत्नी ने शिकायत दर्ज करायी थी।
जानकारी के अनुसार पूर्व पत्नी ने सलेम में न्यायिक मजिस्ट्रेट सह अतिरिक्त महिला अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत याचिकाकर्ता डॉ पी शशिकुमार के विरूद्ध तलाक के लिए अवेधन किया था। याचिकाकर्ता ने भी सलेम में प्रथम अतिरिक्त उप न्यायाधीश के सामने ऐसी ही याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता की तलाक के लिये पारिवारिक अदालत ने पत्नी की अपनी मर्जी से अलग होने की बात को ध्यान में रखते हुए दोनों की अर्जी स्वीकार कर दोनों का तलाक मंजूर किया था। इसी बीच जब सभी पारिवारिक अदालत के फैसले की प्रतीक्षा कर रहे थे, उसी दौरान पत्नी ने याचिकाकर्ता के विरूद्ध शिकायत कर डॉ पी शशिकुमार को उनकी सेवा से हटवा दिया था।