जानें किस कारनामे के लिये इस विवर का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्स में दर्ज हुआ!

जानें किस कारनामे के लिये इस विवर का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉड्स में दर्ज हुआ!

केले और अनानस के रेशों से बनाते है साड़ी, 1800 से 10 हजार तक की है कीमत

कुछ लोगों के बारे में सुनकर ऐसा लगता है कि क्या ये सच है? क्या कोई ऐसा कर सकता है? ऐसा ही एक मामला सामने आया, जब चेन्नई के अनाकपुथुर के एक तीसरी पीढ़ी के बुनकर सी सेकर ने कुछ ऐसा कर दिखाया जिसके कारण ना सिर्फ उसे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सराहना प्राप्त हुई बल्कि 2011 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी स्थान मिला। चेन्नई के अनाकपुथुर के सेकर ने अनोखा काम करते हुए केले, जूट, बांस, अनानास और अन्य 25 प्राकृतिक फाइबर का उपयोग कर एक साड़ी बनाई थी जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी हालिया चेन्नई यात्रा के दौरान खूब सराहा था।
कौन हैं सी. सेकर?
सी. सेकर चेन्नई के अनाकपुथुर के रहने वाले है और वो अपने परिवार के तीसरी पीढ़ी के बुनकर हैं। अनाकपुथुर चेन्नई की बात करें तो अनाकपुथुर बेहतरीन बुनकरों के लिये प्रसिद्ध है। पर नई तकनीक और बदलते ज़माने के साथ वहां के हैंडलूम और बुनकरों की संख्या में तेज़ी से गिरावट आने लगी। एक ओर जहां लोग अनाकपुथुर के बुनकरों को भूलते जा रहे थे, वहीं सी. सेकर जैसे लोग अपने काम से लोगों को आश्चर्यचकित करते हुए इंडस्ट्री को फिर आगे बढ़ाने की उम्मीद जगाई है। 
कभी अफ्रीका तक फैला था व्यवसाय
आपको बता दें कि सेकर और उनका परिवार पारंपरिक बुनकर थे और 1970 में मुख्य रूप से अफ्रीका के नाइजीरिया में यहां के उत्पाद निर्यात किए जा रहे थे। मद्रास के चेक कपड़े प्रमुख उत्पाद थे, जिसे अनाकपुथुर बुनकर निर्यात कर रहे थे। लेकिन अफ्रीका में राजनीतिक माहौल में बदलाव के साथ ही इस आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। इस प्रतिबन्ध से अनाकपुथुर के बुनकरों को बड़े पैमाने पर नुकसान हुआ। हालाँकि कुछ समय बाद प्राकृतिक उत्पादों और टिकाऊ उत्पादों की मांग में वृद्धि होने से एक फैशन स्टेटमेंट में बदलाव आ गया। सेकर ने अपने उद्योग को टिकाऊ बनाने के लिए कुछ अलग करने का सोचा और केले के फाइबर से साड़ियां बनाने की कोशिश की।
कौन-कौन है सेकर के साथ?
आपको बता दें कि सेकर और उनके अनाकपुथुर बुनकर क्लस्टर में लगभग 100 लोग हैं, जिनमें से अधिकांश महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ काम कर रही हैं। इन लोगो ने शुरूआत केले के रेशे से बने धागों से की। गौरतलब है कि केले के पत्ते और पौधे का दक्षिण भारत में अहम् स्थान है और इनकी मांग वहां बहुत हैं। इसी बात का फायदा उठाते हुए सेकर अपने फाइबर को यार्न में बदलने के लिए केले के पौधों की बड़ी मात्रा का उपयोग करते हैं।
एक बड़ी चुनौती, पर हमने किया इस पर काम: सी सेकर
सेकर ने अपनी कला के बारे में बताया कहा, “वास्तव में, यह एक बहुत बड़ी चुनौती थी लेकिन हमने इस पर काम किया। हमने केले के तनों से निकाले गए केले के रेशों से धागा बनाया। पिछले कुछ वर्षों में, हमने केले की फाइबर से उत्पादित यार्न से बनी इन सैकड़ों साड़ियों को बेचा है।”
इस प्रक्रिया में तने से फाइबर को मैन्युअल रूप से निकालने की प्रक्रिया में समय लगता है और केले या अनानास के तने को सूखाना पड़ता है और फिर यार्न बनाने के लिए फाइबर को मैन्युअल रूप से निकाला जाता है। इन कपड़ों के लिए हल्दी और इंडिगो से बने प्राकृतिक रंगों का उपयोग किया जाता है। 
सेकर कहते हैं, “फिर यार्न को विभिन्न जड़ी-बूटियों, मसालों और यहां तक कि गाय के गोबर में उनके जीवाणुरोधी गुणों के लिए इलाज किया जाता है। तुलसी और पुदीना जैसी औषधीय जड़ी-बूटियों का भी उपयोग किया जाता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि इन कपड़ों के उपयोगकर्ताओं को स्किन एलर्जी न हो।”
इतने दिनों में होती है तैयार एक साड़ी, एक साड़ी की कीमत होती है इतनी
साड़ी बनाने की प्रक्रिया के बारे में सेकर बताते है कि ऐसी एक साड़ी बनाने में एक बुनकर ४ से ५ दिनों में  जबकि दो बुनकर मिलकर दो दिन में बनाते हैं। ऐसी प्रत्येक साड़ी की कीमत 1,800 से 10,000 रुपये के बीच होती है।
बाजार में तेज है इन साड़ियों की मांग, पर कोरोना ने पहुँचाया नुकसान 
इन साड़ियों की मांग भी बहुत होती है। लेकिन कोविड-19 के कारण व्यवसाय को बहुत नुकसान हुआ है और बेरोजगारी बढ़ रही है। हालाँकि सेकर अपने उत्पाद को दुनिया के सभी हिस्सों में ले जाना चाहते है। सेकर की चाह है कि वो दुनिया के प्रत्येक शहर में अपनी साड़ी का एक रिटेल आउटलेट खोल सके और इसके साथ साथ वह प्रधानमंत्री मोदी के ‘मेक इन इंडिया’ को वैश्विक बनाने के विजन को आगे बढ़ाना चाहते हैं।
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