गुजरात : जब हाईकोर्ट ने कहा, ‘केवल कागजों पर नहीं, जमीन पर भी काम दिखना चाहिये!’

गुजरात : जब हाईकोर्ट ने कहा, ‘केवल कागजों पर नहीं, जमीन पर भी काम दिखना चाहिये!’

अस्पताल में उपलब्ध रियल टाइम बेड डाटा नहीं होने की बात को लेकर कोर्ट ने उठाए कड़े सवाल

कोरोनावायरस संक्रमण पर गुजरात हाईकोर्ट में दर्ज सुओ मोटों पिटीशन पर अभी सुनवाई चालू है। ऐसे में हाईकोर्ट ने कोरोना के इलाज के लिए मौजूद बेड के रियल टाइम डाटा के बारे में सवाल उठाए है। जस्टिस भार्गव कारिया ने कहा की बेड उपलब्ध है या नहीं इस बारे में कोई भी रियल टाइम डाटा उपलब्च नहीं हो रहा। उन्हों ने खुद 12 घंटो तक चेक किया पर निगम की या सरकारी अस्पतालों में यह डाटा अपडेट नहीं हो रहे। 
आशा वर्कर और एमबीबीएस में पढ़ने वाले छात्र जिन्हें कोविड का काम दिया गया है उनका टीकाकरण पहले किया जाना चाहिए। सीनियर एडवोकेट पर्सी काविना ने खा की सरकार टेस्टिंग की संख्या घटाकर मृतकों की संख्या की अंडर रिपोर्टिंग कर रही है। इसके अलावा उन्होंने म्यूकरमाइकोसिस और महंगी दवाओं का मुद्दा भी उठाया। पर्सी ने कहा की नए केस बढ़ते जा रहे है, जिसके लिए सरकार की कोई तैयारी नहीं दिख रही है। टीकाकरण के लिए भी सरकार के पास कोई मजबूत प्लानिंग नहीं है। सीनियर एडवोकेट मिहिर ठाकोर ने कहा की म्यूकरमाइकोसिस के इंजेकशन काफी महंगे है। एक इंजेक्शन 7000 रुपए का है, फिलहाल इंजेक्शन कम है और मरीज अधिक है। 
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एडवोकेट जनरल ने कहा की कोरोना की चेईन तोड़ने के लिए सभी प्रयास हो रहे है, सभी अपना काम कर रहे है। पर जिन लोगों में कोई लक्षण नहीं है वह अपना टेस्ट नहीं करवा रहे है ऐसा लग रहा है। जिसके चलते टेस्ट की संख्या घटी है। कोर्ट ने पूछा की जहां सभी तरह की सुविधा नहीं है और ग्रामीण इलाकों में जहां केस बढ़ रहे है ऐसे में उनके लिए क्या किया जा रहा है? टेस्टिंग के बारे में बताते हुये एडवोकेट जनरल ने कहा की 26 में से 15 यूनिवर्सिटी में टेस्टिंग का काम शुरू हो चुका है। इसके अलावा 6 यूनिवर्सिटी में आने वाले एक सप्ताह के अंदर टेस्टिंग शुरू हो जाएगी। 
कोर्ट ने कहा की मात्र कागज पर ही नहीं पर जमीन पर भी काम होने चाहिए। जस्टिस भार्गव कारिया ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में एक दिन के लगभग 4 से 5 लोग मरते है। उनका टेस्ट भी नहीं हुआ होता। इसके अलावा सबसे बड़ी बात तो यह कि उन्हें यही नहीं पता होता कि उन्हें टेस्ट करवाना है। इन चीजों के लिए सरकार क्या कर रही है। इसके अलावा रोज के 25 हजार रेमड़ेसिविर इंजेक्शनों के सामने मात्र 16 हजार इंजेक्शन आने कि बात को लेकर भी कोर्ट ने कहा कि क्या इंजेक्शन कि कमी के कारण सरकार मरीजों को मरने देंगी। केंद्र और राज्य सरकार दोनों को इस बात का जवाब देना होगा। आखिर क्यों राज्य की लघूत्तम जरूरत जीतने भी इंजेक्शन केंद्र द्वारा नहीं पहुंचाए जा रहे है।