गुजरात : ये वाला गरबा सही है, सोशल डिस्टसिंग का पालन खुद-ब-खुद हो जाता है!

गुजरात : ये वाला गरबा सही है, सोशल डिस्टसिंग का पालन खुद-ब-खुद हो जाता है!

इसे कहते हैं डोरी गरबा, रस्सी पकड़ कर खेला जाता है डांडिया

देश और दुनिया भर में कोरोना महामारी ने अपना कहर बरपाया हुआ है। सोशल डिस्टेन्स का पालन करना आजकल काफी जरूरी हो गया है। पिछले साला कोरोना महामारी के कारण ही देश भर में किसी भी तरह के त्योहारों को मनाया नहीं गया था। हालांकि इस साल कोरोना महामारी की असर थोड़ी कम है। जिसके चलते राज्य में नवरात्रि मनाने की अनुमति दी गई है। हालांकि इसके दौरान भी मास्क और सोशल डिस्टेन्सिंग की दूरी का पालन करना अनिवार्य है। ऐसे में लोगों का यह सवाल है की अब नवरात्रि के दौरान गरबा तो होना है और उसमें सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन कैसे संभाव है। तो आइये आज हम आपको एक ऐसा गरबा बताते है, जिसमें अपने आप ही सोशल डिस्टेन्सिंग का पालन हो जाता है। 
गुजरात के पाटण के गुर्जरवाड़ा में आज भी यह प्राचीन डोरी गरबा मशहूर है। यहाँ हर साल नवरात्रि के दौरान कुछ दिन डोरी गरबा जरूर खेले जाते है, जिससे की आगे भी यह परंपरा चालू रहे। हालांकि यह गरबा काफी मुश्किल है और जिन लोगों ने अभी-अभी गरबा खेलना सीखा है उनके लिए यह काफी कठिन है। डोरी गरबा खेलने के लिए आठ, बार या सोल डोरी एक गोल प्लेट पर घड़ी के कांटो की तरह बांध दी जाती है। लोहे की इस प्लेट पर एक लोखंड का कडा लगा होता है। जिसे मैदान में काफी ऊपर बांधा जाता है।  
सभी डोरी ऊपर से नीचे की तरफ होती है। इसमें आधे लोग दायें हाथ से तो आधे लोग बाएँ हाथ से डोरी पकड़ते है। डोरी के कारण गरबा खेलते वक्त सभी लोगों में एक नियत दूरी बनी रहती है। हालांकि इस अर्वाचीन गरबा का महत्व आज तक हमें नहीं मालूम था, पर अब आज इस गरबा का महत्व आज के वातावरण के अनुसार समझ पड़ रही है। डोरी गरबा खेलना हर किसी के बस की बात नहीं है। हाथ में डोरी पकड़ कर आधे खैलेया बाहर की तरफ तो आधे अंदर की तरफ गोल घूमते है। इसके कारण एक सुंदर रचना तैयार होती है। 
एक बार पूरी तरह से डोरी की रचना बंद होने के बाद उसे खोलने के लिए भी फिर से गरबा खेलने पड़ते है। जैसे जैसे गरबा खेला जाता है। विभिन्न रचना बनती जाती है। डोरी गरबा हमारी सांस्कृतिक वैविध्यता का एक प्रतीक है और काफी कम जगह पर प्रसिद्ध है।