गुजरात : कोरोना काल में गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित न रहे इसके लिए घर-घर जाकर पढ़ा रहे शिक्षक

गुजरात : कोरोना काल में गरीब बच्चे शिक्षा से वंचित न रहे इसके लिए घर-घर जाकर पढ़ा रहे  शिक्षक

शिक्षा के साथ-साथ संस्कृति और प्रकृति का संवर्धन हो इस तरह मालीडा की शाला में हो रही प्रवृत्ति

जूनागढ़ के मालीडा  प्राइमरी स्कूल में नर्सरी बनाकर औषधीय पौधे तैयार कर छात्रों के घर लगाए गए हैं
कोराना की अवधि के दौरान समाज के कई हिस्से प्रभावित हुए हैं। कईयों की नौकरियां चली गईं, कई व्यवसाय चौपट हो गए। पिछले एक साल के दौरान हमने कई नकारात्मक बातें सुनी हैं। तो चलिए आज बात करते हैं कुछ ऐसी जो समाज को प्रेरित करती है।आज हमें शिक्षा की दुनिया की बात करनी है, आमतौर पर लॉकडाउन के कारण शिक्षा की स्थिति बहुत खराब हो गई थी। शिक्षित और शहरी क्षेत्रों में ऑनलाइन शिक्षा भी एक विकल्प है, लेकिन जब बात ग्रामीण/नेसडा की आती है तो ऑनलाइन शिक्षा को लेकर कई सवाल उठते हैं। गिरनार जंगल के कांटेदार इलाके में रहने वाले पशुपालन कर परिवार का भरण पोषण करने वाला मालधारी परिवार के बच्चे हों या  फिर मालीडा जैसे कामकाजी परिवारों की आबादी वाले गांव के बच्चे। शिक्षा के लिए बुरा समय हो सकता है, लेकिन इतने नकारात्मक माहौल में भी मालीडा प्राथमिक शाला के आचार्य बाघूभाई डोबरिया एवं शाला परिवार के शिक्षकों द्वारा सकारात्मक/रचनात्मक कार्रवाई की गई और आज भी हो रहा है।
कोरोना की स्थिति के बीच भी, मालीडा के स्कूल और शिक्षक परिवार द्वारा मालीडा और आसपास के क्षेत्र में नेसडा के बच्चों को शिक्षा का संदेश फैलाने के लिए कई सकारात्मक कार्य किए गए हैं। सवाल यह है कि शेरी शिक्षा क्या है? जिस प्रकार शहरों में समाज होते हैं, उसी प्रकार मलिडा गाम और आसपास के शेरी-मोहल्ला  में 10 से 12 परिवार रहते हैं। सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने का निर्णय लिया गया। जिसमें शासन की ओर से आवेदन व अन्य सामग्री उपलब्ध कराई गई। लेकिन मालीडा  गांव और उसका परिवेश एक ऐसा क्षेत्र है जहां अधिकांश घरों में न केवल एंड्रॉइड मोबाइल सुविधा है, बल्कि संक्षेप में, इंटरनेट के माध्यम से शिक्षा प्रदान करना लगभग असंभव है।
ऐसी स्थिति में बच्चों के भविष्य को ध्यान में रखते हुए और स्थिति को ध्यान में रखते हुए, मालीडा गांव के आचार्य बाघूभाई डोबरिया और शिक्षकों की एक टीम ने बच्चे जहां कहीं भी रहे, वहां जाकर उन्हें शिक्षित करने की योजना बनाई। ताकि बच्चों को भी शिक्षा मिले। इस प्रकार  शिक्षा की शुरुआत पहलेलॉकडाउन के समय से शुरू की गई थी। सरकारी कोरोना की गाइडलाइन के अनुसार छात्रों को अलग-अलग समूहों में  इकट्ठा कर पढ़ाने का काम शुरु किया गया।  इस तरह पहली शिक्षा एक प्रकार की व्यक्तिगत ट्यूशन की तरह हो गई है ताकि यह बच्चे के लिए फायदेमंद हो। इस तरह से दी जाने वाली शिक्षा में माता-पिता का भी पूरा समर्थन होता है। जो बच्चा पढ़ने नहीं आता था, उसे लोग पकड़कर ले आते थे। इससे  बच्चों की उपस्थिति भी अधिक होती है और  बच्चों को स्कूल में जो शिक्षा मिलती है,  वही शिक्षा बच्चों को घर पर मिलती है।
बागुभाई डोबरिया ने कहा कि इस प्रणाली के माध्यम से बच्चों को पढ़ाने के कई फायदे हैं। सबसे पहले, बड़ा फायदा यह है कि बच्चों के मन से स्कूल के प्रति घृणा दूर हो जाती है। जिन बालकों को वर्गखंड का डर था वह भी निकल जाता है। इस शेरी शिक्ष से जानने को मिला कि जो बच्चा स्कू के कक्षा में कुछ भी नहीं बोलता है वह शेरी शिक्षा में कक्षा खुलकर बोलता है और सवाल करता है। इस प्रकार की शिक्षा भविष्य के लिए बहुत प्रभावी साबित हो सकती है क्योंकि इस शिक्षा में शिक्षक व्यक्तिगत रूप से एक बच्चे पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। सरकार का दिशा-निर्देश तो ऑनलाइन शिक्षा के लिए था लेकिन चूंकि ऑनलाइन शिक्षा संभव नहीं थी इतने दुर्गम क्षेत्र में शिक्षकों ने खुद इस कार्य को अंजाम दिया। मालीडा गाम की शाला के शिक्षकों की प्रेरणादायी शिक्षण से कार्य को आज बच्चों के अभिभावक सराहना कर रहे हैं।  
  राज्य सरकार ने शिक्षा विभाग के कुशल अधिकारियों के अनुभव को समाहित कर शिक्षा के क्षेत्र में सुविधाओं में क्रांति ला दी है। भारत के भविष्य को कक्षा में आकार दिया जा रहा है। राज्य सरकार के शिक्षा विभाग का ही नाम है कि बच्चों को सुविधाजनक शिक्षा मिले। गरीब छात्रों को बेहतर सुविधा प्रदान करने के लिए निम्न साक्षरता कन्या निवास शाला योजना के तहत कन्या निवास शाला योजना की घोषणा की गई है। वहीं भेसाण तालुका के मलीडा गाँव के स्कूल में उत्पन्न हुई विचारकर्णिका वट वृक्ष बन जाएगी। सरकारी स्कूल सबसे अच्छा स्कूल रहेगा। पंडित दीनदयालजी और अटलजी के भारत के सपने को साकार करने में गुजरात सरकार के शिक्षा विभाग के काम के लिए मालीडा स्कूल के शिक्षकों की टीम का काम सराहनीय है।   
पर्यावरण संरक्षित करने के उद्देश्य से बच्चों से लगवाते जाते हैं पौधे
     अपने स्कूल की गतिविधियों की जानकारी देते हुए मालीडा स्कूल के प्राचार्य ने कहा कि हमारे स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के अलावा प्रकृति संरक्षण, स्वच्छता और संस्कृति भी सिखाई जाती है। स्कूल किचन गार्डन, बीज बैंक, पुस्तकालय, पर्यावरण प्रयोगशाला सहित सुविधाओं के माध्यम से प्रत्यक्ष ज्ञान की सुविधा भी देता है। साथ ही  समय-समय पर हम बच्चों के लिए छोटी यात्राएं करते हैं और उन्हें भौगोलिक और सांस्कृतिक मामलों से परिचित कराते हैं।  स्कूल के प्रांगण में हम बच्चों की मदद से पेड़ लगाते हैं। 
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