गुजरात : जर्मनी में रह रहा शाह परिवार 11 महीने से अपनी मासूम बेटी से है दूर, जानिए क्या है पूरा मामला

गुजरात : जर्मनी में रह रहा शाह परिवार 11 महीने से अपनी मासूम बेटी से है दूर, जानिए क्या है पूरा मामला

एक मामूली गलती को आधार बनाकर जर्मन सरकार ने बच्ची को अपने पास रख लिया, माता-पिता को कोर्ट से बरी किए जाने के बाद भी नहीं दे रहे मासूम बेटी की कस्टडी

एक आकस्मिक मामूली चोट के कारण जर्मनी में रहने वाले मुंबई के माता-पिता 11 महीने से अपनी मासूम बेटी से दूर हैं। जर्मनी की चाइल्ड सर्विसेज ने लड़की के माता-पिता के खिलाफ यौन शोषण का मामला दर्ज करने के बाद उसे हिरासत में ले लिया। माता-पिता को कोर्ट से बरी किए जाने के बाद भी मासूम बेटी की कस्टडी नहीं मिल सकी। माता-पिता ने केंद्र सरकार से अपनी बेटी की कस्टडी दिलाने की अपील की है। साथ ही जैन मुनियों और अन्य लोगों द्वारा भी प्रयास किए जा रहे हैं।
मामले में जानकारी के अनुसार मुंबई के भायदार में रहने वाले भावेश शाह अपनी पत्नी धारा के साथ काम के सिलसिले में 2018 में जर्मनी के बर्लिन में बस गए थे। बेटी अरिहा का जन्म फरवरी 2021 में हुआ था। सितंबर 2021 में अरिहा की दादी बर्लिन गईं थीं। अरिहा को अस्पताल में भर्ती कराया गया था जब उसकी दादी ने डायपर बदलते समय अनजाने में उसके निजी अंग को घायल कर दिया था। इसके बाद जब भावेश और धरा अपनी बेटी को दुबारा चेक-अप के लिए गये तो उन पर मुसीबत का पहाड़ टूट पड़ा। इसके बाद डॉक्टर ने मामूली चोट को यौन शोषण के रूप में बताया और जर्मन पुलिस ने दंपति के खिलाफ मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया। साथ ही निर्दोष अरिहा को कब्जे में ले कर बाल सेवा (सरकारी बाल सेवा) को सौंप दिया।
हालांकि मामले में जर्मन पुलिस द्वारा दर्ज मामले में साक्ष्य के अभाव में माता-पिता को बरी कर दिया गया और मामला बंद कर दिया गया। हालांकि अभी सिविल केस कोर्ट में चल रहा है। माता-पिता के बरी होने के बाद भी, जर्मन सरकार के जिद्दी रवैये ने माता-पिता को अपनी बेटी की कस्टडी पाने में असमर्थ बना दिया है। जर्मनी में इस बात को लेकर चिंता बढ़ रही है कि क्या माता-पिता जैन परंपरा के अनुसार अरिहा का पालन-पोषण कर रहे हैं। शाह परिवार ने भारतीय प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, विदेश मंत्री से अपील की है कि वे उनकी बेटी की कस्टडी जर्मन सरकार से वापस दिलाये। वहीं दूसरी ओर जैन समाज के नेताओं और जैन मुनियों ने भी माता-पिता को बेटी की कस्टडी देने का प्रयास किया है।
अरिहा की मां धारा शाह से फोन पर हुई बातचीत में उन्होंने रोते हुए पूरा वाकया सुनाया और कहा, ''हम अपनी बेटी की कस्टडी पाने के लिए काफी संघर्ष कर रहे हैं, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला।'' बाल अधिकार कानूनों का पालन नहीं होने के कारण हम 11 महीने से अपनी बेटी से दूर हैं। साथ ही क्या उनका पालन-पोषण जैन और भारतीय संस्कृति के अनुसार हुआ है? इसके खिलाफ चिंता व्यक्त करते हुए सरकार को गंभीर कदम उठाने चाहिए आशा व्यक्त की है।
बाल अधिकार कानून के बावजूद जर्मनी का अड़ियल रवैया 
यूनाइटेड नेशन कन्वेंशन ओं राइट्स ऑफ़ चाइल्ड यानि संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा जारी बाल अधिकारों को अमेरिका, जर्मनी, भारत समेत अन्य देशों में भी लागू किया गया था। भारत भी इसका एक सदस्य है। लेकिन जैन परिवार के अरिहा के मामले में इस कानून का पालन नहीं किया गया। जब बालिका के पास भारतीय नागरिकता होती है, तो भारतीय संस्कृति और जैन परंपरा के अनुसार उसके पालन-पोषण होना चाहिए पर इस पर माँ-बाप को संदेह है। कानून के अनुसार, या तो रिश्तेदार या भारत सरकार बालिका की कस्टडी ले सकती है। लेकिन जर्मन सरकार इस संबंध में कोई कार्रवाई करने को तैयार नहीं है। अरिहा का पासपोर्ट भी जब्त कर लिया गया है। ऐसी आशंका है कि सरकार पासपोर्ट में भी नागरिकता बदल सकती है।
जर्मन सरकार ने भारत सरकार से लिखित गारंटी मांगी
भारत सरकार को अभ्यावेदन दिए जाने के बाद, भारतीय दूतावास ने जर्मन सरकार के साथ एक बैठक की और चर्चा की कि बालिकाओं की कस्टडी सौंपने के साथ-साथ भारत में बालिकाओं के अधिकारों को व्यवस्थित रूप से संरक्षित किया जाएगा। लेकिन जब जर्मन चाइल्ड सर्विसेज ने केंद्र सरकार से लिखित गारंटी देने को कहा तो भारतीय दूतावास के लिए यह जरूरी हो गया कि वह गंभीर कार्रवाई करे और बच्ची की कस्टडी पाने के लिए कदम उठाए।