चुनावी जीत का एक महत्वपूर्ण गुणा-भाग ये है कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी हो गया है!

चुनावी जीत का एक महत्वपूर्ण गुणा-भाग ये है कि आगामी राष्ट्रपति चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी हो गया है!

पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा का दबदबा स्पष्ट दिखाई दिया था। इन परिणामों के चलते ही अब भाजपा द्वारा आने वाले राष्ट्रपति के चुनावों में राष्ट्रपति का चयन करने के लिए अन्य पक्षों की मदद लेनी नहीं पड़ेगी। बता दे कि वर्तमान राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द का कार्यकाल इस साल जुलाई महीने में पूरा होने जा रहा है। ऐसे में इस साल ही राष्ट्रपति पद के लिए भी चुनाव किए जाएँगे। जिसमें अब भाजपा द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव करने के लिए अन्य पक्षों का समर्थन हासिल करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। 
यदि यूपी में समाजवादी पार्टी की सरकार आती तो भाजपा को अपने सहायक दल जैसे ही बीजेड़ी, टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस का समर्थन लेना पड सकता था। फिलहाल कांग्रेस पाँच राज्यों में से किसी में भी आगे नहीं है, एक राज्य जहां कांग्रेस आगे थीं वहाँ भी आप ने अपना कब्जा जमा लिया था। जबकि पाँच में से चार राज्यों में भाजपा की स्थिति काफी अच्छी थी। राष्ट्रपति के चुनावों में इसका काफी प्रभाव पड़ेगा। 
बता डें कि राष्ट्रपति के चुनावों में देश के सभी राज्यों में से चुने गए विधायक और सांसद मतदान करते है। ऐसे में भाजपा जहां अपनी पूर्व स्थिति में आ चुका है। कांग्रेस ने एक और राज्य गंवा दिया है। लोकसभा कि बात करते तो भाजपा सम्मिलित एनडीए के पास 62 और कांग्रेस सम्मिलित यूपीए के पास 20 प्रतिशत तथा अन्य पार्टियों के पास 18 प्रतिशत बैठक है। वहीं राज्यसभा में एनडीए के पास 49 प्रतिशत, यूपीए के पास 21 प्रतिशत अन्य पक्षों के पास 30 प्रतिशत बैठक है। वहीं सभी विधानसभा बैठकों कि बात करें तो एनडीए के पास 44 प्रतिशत, यूपीए के पास 30 प्रतिशत और अन्य पक्षों के पास 26 प्रतिशत सीट है। 
ऐसे में राष्ट्रपति के चुनावों में फिर से एक बार भाजपा के विधायकों और सांसदों की संख्या में भी इजाफा होने के चलते विधानसभा के चुनावों में राष्ट्रपति के इलेक्षण के लिए उन्हें  किसी और पक्ष का समर्थन लेने की नौबत नहीं आएगी।
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