भारत से भी अधिक महंगवाई अमेरिका में है, 40 वर्षों का रिकॉर्ड टूटा है!

भारत से भी अधिक महंगवाई अमेरिका में है, 40 वर्षों का रिकॉर्ड टूटा है!

विश्व बाजार पर दिखाई दे रहा है अमेरिकी मंहगाई का असर, भारत में भी शेयर बाजार की स्थिति बिगड़ती हुई, रुपया हो रहा कमजोर

इस समय देश में आम जनता बढ़ती महंगाई से त्रस्त है। पेट्रोल-डीजल और गैस के दाम बढ़ने के कारण हर रोजमर्रा की चीजों की कीमतों पर असर हुआ है। वहीं रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध ने मामले को और गंभीर बना दिया है। हाल ही आरबीआई ने अपने रेपो रेट पर बढ़ोतरी की जिससे मासिक क़िस्त की कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। इसबप्रकार से हम पूरी तरह से मंहगाई से जूझ रहे हैं। पर ऐसा नहीं है कि ये हालात सिर्फ भारत में है। अन्य देशों से तुलना की जाए तो पता चलेगा कि बाकी देशों की भी हालत ऐसी ही है। हम अमेरिका की बात करें तो वहां मंहगाई बीते 40 साल का रिकॉर्ड तोड़ चुकी है।
आपको बता दें कि  अमेरिका में महंगाई का मई महीने के लिएबडेटा सामने आ गया है। अमेरिकी लेबर डिपार्टमेंट की तरफ से जारी डेटा के मुताबिक, मई के महीने में कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स यानी रिटेल इंफ्लेशन 4 दशकों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। इन आंकड़ों के अनुसार मई महीने में सीपीआई सालाना आधार पर 8.6 फीसदी रहा। जबकि अप्रैल के महीने में खुदरा महंगाई दर 8.3 फीसदी रही थीम मार्च के मुकाबले मई में महंगाई दर में 0.3 फीसदी की तेजी दर्ज की गई। मार्च 2022 में उपभोक्ता मूल्य आधारित महंगाई 1982 के बाद पहली बार 8.5 फीसदी पर पहुंची थी।
बढ़ती मंहगाई के बीच खानपान एवं अन्य जरूरी वस्तुओं की कीमतें बढ़ने से किसी भीबअमेरिकी परिवार के लिए जीवन-निर्वाह काफी मुश्किल हो गया है। इसकी सबसे ज्यादा मार अश्वेत समुदाय एवं निम्न-आय वर्ग के लोगों को झेलनी पड़ रही है। कुछ विश्लेषकों ने ऐसी संभावना जताई है कि आने वाले कुछ महीनों में महंगाई में थोड़ी राहत मिल सकती है पर इसके बावजूद महंगाई के साल के अंत में सात फीसदी से नीचे आने की संभावना कम ही है।
शेयर बाजार की बात करें तो इन आंकड़ों के बाद अमेरिकी शेयर बाजार में भारी बिकवाली हुई है। डाउ जोन्स में 880 अंक यानी 2.73 फीसदी, नैसडैक में 414 अंक यानी 3.52 फीसदी और एस एंड पी 500 में 117 अंक यानी 2.91 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। इसका असर ग्लोबल मार्केट पर भी पड़ा है। अमेरिका की दशा के कारण भारतीय बाजार में भी 1000 अंकों से ज्यादा की गिरावट आई।
इस महंगाई के कारण अमेरिकी फेडरल रिजर्व पर इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी का दबाव बढ़ गया है। ऐसे में अगर फेडरल रिजर्व इंट्रेस्ट रेट में बढ़ोतरी करता है तो विदेशी निवेशको को और नुकसान उठाना पड़ सकता है। साथ ही भारतीय शेयर बाजार में अभी और कमी देखी जा सकती है। इसके अलावा हाई इंट्रेस्ट रेट से रुपए की वैल्यु और घटेगी जो पहले ही 78 रुपए के स्तर पर पहुंच चुकी है। कमजोर रुपए से इंपोर्ट बिल महंगा होगा और इंपोर्टेड इंफ्लेशन रेट बढ़ जाएगा। ऐसे में रिजर्व बैंक पर रुपए में मजबूती लाने के लिए इंट्रेस्ट रेट बढ़ाने का दबाव बढ़ेगा। चालू वित्त वर्ष के लिए सरकार ने बजट 2022 में फिस्कल डेफिसिट का लक्ष्य 6.9 फीसदी रखा है। इसके लिए कच्चे तेल का औसत भाव 75 डॉलर रखा है। रिजर्व बैंक ने इसी सप्ताह हुई MPC की बैठक में कच्चे तेल के लिए औसत भाव को बढ़ाकर 105 डॉलर प्रति बैरल कर दिया है।