शायर हो तो मिर्जा गालिब जैसा
जन्मदिन पर गूगल ने समर्पित किया डूडल भोपाल(ईएमएस)। अजीम शायर की मिर्जा गालिब की 220वीं जयंती पूरी दुनिया मना रही है ऐसे में गूगल ने उन्हें अपना डूडल समर्पित कर खिराजे अकीदत पेश किया है। गूगल ने ‘मिर्जा गालिब का 220वां जन्मदिन’ शीर्षक से डूडल बनाया है जो कि लोगों को खासा पसंद आया है। मिर्जा गालिब दुनिया के एकमात्र ऐसे शायर रहे हैं जिन्होंने जिंदगी के हर पहलू को अपनी शायरी के जरिए छूआ है। मिर्जा गालिब का असली नाम मिर्जा असद-उल्लाह बेग खान था। बहुत कम शब्दों में जिंदगी के बड़े से बड़े राज को खोल देने की कला जो उन्होंने पाई वो अन्य शायरों में कम ही मिलती है। यही वजह है कि मुगल सल्तनत से लेकर आज तक मिर्जा गालिब को जो मुकाम शायरी की दुनिया में मिलता है वो किसी और को नहीं मिला। आज के अत्याधुनिक युग में भी गालिब को पसंद किया जाता है। यही वजह है कि मंचों पर गालिब के कलाम को पढ़ा जाता है तो वहीं बॉलीवुड और टेलीविजन की दुनिया में भी गालिब छाए रहते हैं। बॉलीवुड में सोहराब […]
जन्मदिन पर गूगल ने समर्पित किया डूडल
भोपाल(ईएमएस)। अजीम शायर की मिर्जा गालिब की 220वीं जयंती पूरी दुनिया मना रही है ऐसे में गूगल ने उन्हें अपना डूडल समर्पित कर खिराजे अकीदत पेश किया है। गूगल ने ‘मिर्जा गालिब का 220वां जन्मदिन’ शीर्षक से डूडल बनाया है जो कि लोगों को खासा पसंद आया है।
मिर्जा गालिब दुनिया के एकमात्र ऐसे शायर रहे हैं जिन्होंने जिंदगी के हर पहलू को अपनी शायरी के जरिए छूआ है। मिर्जा गालिब का असली नाम मिर्जा असद-उल्लाह बेग खान था। बहुत कम शब्दों में जिंदगी के बड़े से बड़े राज को खोल देने की कला जो उन्होंने पाई वो अन्य शायरों में कम ही मिलती है। यही वजह है कि मुगल सल्तनत से लेकर आज तक मिर्जा गालिब को जो मुकाम शायरी की दुनिया में मिलता है वो किसी और को नहीं मिला। आज के अत्याधुनिक युग में भी गालिब को पसंद किया जाता है। यही वजह है कि मंचों पर गालिब के कलाम को पढ़ा जाता है तो वहीं बॉलीवुड और टेलीविजन की दुनिया में भी गालिब छाए रहते हैं।
बॉलीवुड में सोहराब मोदी ने ‘मिर्जा गालिब (1954)’ नाम से फिल्म बनाई जो यादगार साबित हुई। इसी प्रकार टेलीविजन पर गुलजार का बनाया गया टीवी सीरियल ‘मिर्जा गालिब (1988)’ आज भी जेहन में है। इससे हटकर मिर्जा गालिब के शेरों को आम जिन्दगी में लगातार सुना जा सकता है। यह अलग बात है कि उन शेरों की अदायगी करते हुए हम नहीं जानते कि यह गालिब का ही शेर है। अगर यकीन नहीं आता तो देखें यह शेर जो ज्यादातर जन्मदिनों पर प्रयोग में आता है कि ‘तुम सलामत रहो हजार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हजार।’
या फिर ‘निकलना ख़ुल्द से आदम का सुनते आए हैं लेकिन, बहुत बे-आबरू हो कर तिरे कूचे से हम निकले।’ और अंतत: खुद गालिब की जुबां से निकला ”हैं और भी दुनिया में सुख़न-वर बहुत अच्छे, कहते हैं कि ‘ग़ालिब’ का है अंदाज़-ए-बयाँ और।।” ऐसे महान महान शायर मिर्ज़ा ग़ालिब के जन्मदिन पर गूगल अपना डूडल बनाकर मानों खुद को उपकृत कर रहा है।