हाईकोर्ट ने सरकार की बखिया उधेड़ी, श्रमिकों से किराया क्यों लिया?

पूरे देश में लॉकडाउन की परिस्थिति है। कई लोगों के पास अब रोजगार नहीं रहे। जिससे कई श्रमिक शहरों से पैदल चलकर अपने गांव जाने के लिए मजबूर हैं। दूसरी तरफ राज्य सरकार द्वारा निजी अस्पतालों को कोरोना का उपचार करने के लिए स्वीकृति दी गई है। ऐसे में शुक्रवार को गुजरात हाईकोर्ट ने सुओमोटो को लेकर गुजरात सरकार को निजी अस्पतालों में चल रही लूट और श्रमिकों को लेकर धारदार सवाल किया था। जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार को निजी अस्पताल में फी का स्तर तय करने के लिए कहा है। इसके अलावा निजी अस्पताल उपचार के बहाने रोगियों के पास से लूट ना मचाएं और हर किसी को अच्छा उपचार मिले इस प्रकार की व्यवस्था करने की भी आदेश दिया है। तो दूसरी तरफ भूखे लोगों और श्रमिकों के सवालों का तुरंत समाधान लाने के लिए सरकार को आदेश दिया गया है। इसके अलावा यह भी जानकारी दी गई है कि लॉकडाउन के समय में एनजीओ और दाताओं को काम करने दिया जाए।
हाईकोर्ट ने निजी अस्पतालों को लेकर सरकार को कहा था कि निजी अस्पतालों में बेड की संख्या है उसे उपयोग में लेना चाहिए। निजी अस्पताल रोगी के पास से अधिक फी लेगी तो उसका लायसन्स रद्द करने तक की कार्यवाही हाईकोर्ट द्वारा की जा सकती है। कई बार ऐसी घटनाएं सामने आती हैं कि दवाखाने जानेवाले रोगियों को पुलिस द्वारा रोका जाता है, उसे लेकर भी हाईकोर्ट ने आदेश किया है कि दवाखाने जा रहे किसी भी व्यक्ति को पुलिस द्वारा न रोका जाए। इसके अलावा अस्पताल के आईसीयु में सीनियर एन्याथिसेस्ट को 24 घंटे उपस्थित रखने के लिए और उसके साथ क्रिटीकल केयर स्पेश्यालिस्ट को भी उपस्थित रहने का आदेश किया गया है।
गुजरात हाईकोर्ट द्वारा लॉकडाउन को लेकर सरकार को सवाल किए गए हैं कि पैदल जाते लोगों के लिए बस का उपयोग क्यों नहीं किया गया? रास के फंड का उपयोग श्रमिकों के लिए क्यों नहीं हुआ? राज्य सरकार के पास 8000 एसटी बसें हैं उसका उपयोग क्यों नहीं किया? राज्य सरकार ने श्रमिकों के पास से किराया क्यों लिया? 2 लाख कामगार निर्माणकार्य उद्योग के साथ जुड़े हैं, कॉन्ट्रैक्टर श्रमिकों को किराया देने से मना क्यों कर सकता है? कॉम्युनिटी हॉल व स्कूल का उपयोग क्यों नहीं किया गया? किराया नहीं देनेवाले कॉन्ट्रैैक्टरों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं की गर्ई? कोरोना रोगी का अन्य टेस्ट का प्रतिबंध क्यों रखा गया? हेल्थ वर्करों को एन-95 मास्क दें, कक्षा-10 और 12 के छात्रों की स्थिति के संबंध में सरकार स्पष्टता करे। लॉकडाउन में घर में इलेक्ट्रीक फॉल्ट हो तो रिपेयर कौन करेगा? निजी अस्पतालों के साथ कम टाय-अप क्यों किया? निजी अस्पताल में मनमाना फी ली जा रही है, लाख रुपए का उपचार सामान्य व्यक्ति कैसे ले सकेगा? सिविल और एसवीपी में जगह नहीं तो रोगी निजी अस्पताल में जाएंगे।
सुओमोटो के विषय पर राज्य सरकार ने हाईकोर्ट में जवाब पेश किया कि एएमसी द्वारा 36.80 लाख फूड पैकेट का वितरण किया गया है। 30 शेल्टर होम में 1721 श्रमिकों का समावेश किया गया है।
8,40,651 फूट पैकेट और 2,62,100 किलो सब्जी बांटी गई है। गरीबों के लिए 2,95,305 राशन किट बांटा गया है। 2855 वरिष्ठ नागरिकों का नमन प्रोजेक्ट के अंतर्गत केयर की जा रही है। पुलिस द्वारा 11000 राशन किट और 3.88 लाख फूड पैकेट बांटे गए हैं। 263 ट्रेन द्वारा 3,33,304 श्रमिकों को गांव पहुंचाया गया है।
गुजरात हाईकोर्ट द्वारा लॉकडाउन के मामले में अवलोकन किया गया है। लॉकडाउन में गरीब और श्रमिकों की हालत दयनीय है। हरेक श्रमिकों को कोरोना वायरस की चिंता नहीं थी किंतु सबसे बड़ी चिंता उनकी खाने-पीने की थी। फिलहाल गरीब और श्रमिकों को सोश्यल डिस्टेन्स का प्रशिक्षण न दें, फिलहाल सलाह नहीं अपितु अन्न की जरुरत है। वे वायरस से चिंतीत नहीं, भोजन उनकी प्राथमिकता थी।