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अनपढ के सर पर ताज, कैसे चलेगा राज?

सरकारें बदलती है तो पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाएं तथा उनके द्वारा लिए गए निर्णयों में भी बदलाव होता आया है।

लोकतेज.कॉम
2 years ago

सरकारें बदलती है तो पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाएं तथा उनके द्वारा लिए गए निर्णयों में भी बदलाव होता आया है।

Photo/Loktej
सरकारें बदलती है तो पूर्ववर्ती सरकारों की योजनाएं तथा उनके द्वारा लिए गए निर्णयों में भी बदलाव होता आया है। यद्यपि यह बदलाव प्रजालक्षी होना चाहिए लेकिन हमारे इस विविधता सम्पन्न देश मे विविध विचारधाराओं वाली राजनैतिक पार्टियों द्वारा यह बदलाव अपनी विचारधारा तथा मनोनुकूल ही किया जाता रहा है।
हाल ही में राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ की राज्य सरकारें बदल गई है तो यह लाज़मी है कि कई निर्णयों में भी बदलाव अवश्यम्भावी होगा ही। जिसमे कुछ ज्यादा चर्चा में भी रहेंगे।
राजस्थान सरकार द्वारा अभी दो दिन पहले ही एक निर्णय लिया गया कि स्थानीय निकाय तथा पंचायतीराज चुनाव में शैक्षणिक योग्यता को समाप्त कर दिया गया है। अब अनपढ़ भी चुनाव लड़ सकेंगे जो पहले आठवी तथा दसवीं पास होना जरूरी था।
हालांकि यह कांग्रेस के घोषणा पत्र में भी उल्लेखित था कि सरकार बनने के बाद वो ऐसा करेंगे लेकिन अबकी बार के घोषणा पत्र में किसान कर्जमाफी का ही मुद्दा छाया रहा तथा इसी पर ही चर्चाएं चलती रही। अन्य मुद्दे उस मुद्दे के पीछे गौण हो गए अतः किसी को उसके बारे में पता भी नही होगा।
स्थानीय निकाय चुनाव में अब महापौर, सभापति, नगरपालिकाध्यक्ष का चुनाव सीधा जनता ही करेगी। जो पहले होता था लेकिन वसुंधरा सरकार ने इसे बन्द करके जनप्रतिनिधियों द्वारा अपना मुखिया चुना जाना प्रारम्भ किया था।
लेकिन अनपढ़ सीधा राज करेगा यह निर्णय हालांकि उन्होंने पहले ही घोषित तो कर दिया था पर जनता को थोड़ा अटपटा लग रहा है। इस निर्णय पर काफी प्रतिक्रियाएं सोशल मीडिया पर आ रही है।
किसी भी युग मे शिक्षा का महत्व शासन में सर्वाधिक रहा है लेकिन लोकतंत्र में यह शनै शनै तिरोहित सा हो रहा है। अगर जनप्रतिनिधि ही शिक्षित नही होगा तो वो किस प्रकार विविध योजनाओं को सम्पूर्ण रूप से लागू करेगा? किस प्रकार उसके द्वारा विकासात्मक निर्णय ले पायेगा? सारे प्रश्नों के बीच कभी कभी ऐसा लगता है कि अगर हम एक कदम अच्छा बढ़ाते है तो राजनैतिक प्रतिद्वंदिता के कारण दूसरा कदम गलत उठ ही जाता है। लेकिन इसका नुकसान इस महान देश की जनता को होता है जो किसी न किसी रूप में किसी राजनैतिक दल की अनुयायी होती है।
वैसे एक बात और भी है कि अब सरपंच की न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तथा केंद्रीय मंत्री की शैक्षणिक योग्यता में कोई अंतर नही रह गया है।
भारत जिसके नाम का सन्धि विच्छेद करे तो उसका अर्थ होता है कि ज्ञान के प्रकाश में रत। उस देश मे ऐसा निर्णय होना चाहिए कि कोई भी जनप्रतिनिधि कमसेकम स्नातक तो अवश्य ही हो ताकि वो अपने अधीनस्थ कर्मचारियों से योग्य काम ले सके , इस देश की जनता के लिए सुयोग्य निर्णय के सके जो बड़ी आशा से उन्हें चुन कर भेजते है।
सर्व आश्रयदात्री भारत माता की जय…
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