श्रमिकों के गांव जाने के बाद दुकानदारी नहीं
किराणा दुकान में भी इक्का-दुक्का ग्राहकी कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने विगत 25 मार्च से 31 मई तक देशभर में लॉकडाउन घोषित किया था। जिससे कल कारखाने बंद होने से जहां एक ओर श्रमिक बेरोजगार हो गये थे, वहीं दूसरी ओर दैनिक कमाने वाले मजदूरों को दो जून की रोटी के लाले पडऩे लगे। जिससे लॉकडाउन में श्रमिक गांव जाने के लिए जगह-जगह प्रदर्शन करने ेलगे। यही कारण है कि प्रशासन ने उन्हें स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था कर उन्हें गांव भेज दिया। श्रमिकों के गांव जाने से जहां अनलॉक में टेक्सटाइल उद्योग प्रभावित है, वहीं परप्रांतीय बाहुल्य क्षेत्रों में किराणा की दुकानों से लेकर छोटे-मोटे धंधा भी प्रभावित है। परप्रांतीय बाहुल्य विस्तार पांडेसरा, वडोद, भेस्तान, सचिन, डिंडोली, उधना, गोडादरा आदि विस्तारों से हजारों की तादात में श्रमिकों के गांव चले जाने के बाद इस विस्तार के छोटे-बड़े धंधा बुरी तरह से प्रभावित हैं। यहां तक कि किराणा की दुकानों में ग्राहकी नहीं के बराबर देखा जा रहा है। पांडेसरा विस्तार के सत्यनारायण नगर स्थित कालिका किराणा स्टोर के चंद्रकांत मिश्रा ने बताया कि लॉकडाउन में लोगों के गांव चले […]

किराणा दुकान में भी इक्का-दुक्का ग्राहकी
कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए केन्द्र सरकार ने विगत 25 मार्च से 31 मई तक देशभर में लॉकडाउन घोषित किया था। जिससे कल कारखाने बंद होने से जहां एक ओर श्रमिक बेरोजगार हो गये थे, वहीं दूसरी ओर दैनिक कमाने वाले मजदूरों को दो जून की रोटी के लाले पडऩे लगे। जिससे लॉकडाउन में श्रमिक गांव जाने के लिए जगह-जगह प्रदर्शन करने ेलगे। यही कारण है कि प्रशासन ने उन्हें स्पेशल ट्रेनों की व्यवस्था कर उन्हें गांव भेज दिया। श्रमिकों के गांव जाने से जहां अनलॉक में टेक्सटाइल उद्योग प्रभावित है, वहीं परप्रांतीय बाहुल्य क्षेत्रों में किराणा की दुकानों से लेकर छोटे-मोटे धंधा भी प्रभावित है।
परप्रांतीय बाहुल्य विस्तार पांडेसरा, वडोद, भेस्तान, सचिन, डिंडोली, उधना, गोडादरा आदि विस्तारों से हजारों की तादात में श्रमिकों के गांव चले जाने के बाद इस विस्तार के छोटे-बड़े धंधा बुरी तरह से प्रभावित हैं। यहां तक कि किराणा की दुकानों में ग्राहकी नहीं के बराबर देखा जा रहा है।
पांडेसरा विस्तार के सत्यनारायण नगर स्थित कालिका किराणा स्टोर के चंद्रकांत मिश्रा ने बताया कि लॉकडाउन में लोगों के गांव चले जाने के बाद जहां एक ओर लोगों के पुराने पैसे अटके हुए हैं वहीं दूसरी ओर दुकान खोलने के बाद ग्राहकी का इंतजार करना पड़ता है। यहीं नहीं बल्कि थोक व्यापारियों से उधार नहीं मिलने पर दुकान का मेल लगाना भी बमुश्किल हो रहा है।