दीपावली-2019 से दीपावली-2020 तक कैसा रहा कपड़ा कारोबार, ये समीक्षा पढ़ लें (भाग-1)
वर्ष के प्रारम्भ में आशा, कोरोना के दस्तक से निराशा लॉक डाउन में हताशा व अनलॉक में दिलासा भरा रहा वातावरण सितम्बर-ऑक्टोबर में कहीं ‘घी घणा व कहीं मुट्ठी चणा’ मुश्किल भरे दौर से गुजरे सूरत के कपड़ा व्यवसाही सितम्बर व ऑक्टोबर माह में प्रिंट साड़ियों ने जगाई आशा की किरण 27 ऑक्टोबर 2019 की दीपावली से वर्ष 2020 की दीपावली तक का दौर सिल्क सिटी सूरत के अधिकांश टेक्सटाइल्स उद्यमियों, व्यवसाहियों व इस कारोबार से जुड़े लाखों श्रमिकों, कर्मचारियों मुनीमों आदि के लिए आशा, निराशा, हताशा व अनलॉक में कुछ के हिस्से खुशियां आई और कुछ के हिस्से गम भरी स्थिति रही। इन मिश्रित हालातों में अनेक उद्यमी व व्यवसाही ऐसे भी हैं जिन्होंने आपदा को अवसर में बदलने का प्रयास किया और उनकी बल्ले बल्ले भी हो गई। सूरत का टेक्सटाइल्स उद्योग अनेक विधाओं से भरा हुआ है जिसमें स्पिनिंग, टेक्च्युराजिंग, यार्न कारोबार, कपड़ा प्रोसेसिंग, एम्ब्रॉयडरी एंव वेल्यू एडेड वर्क, लेस, बॉर्डर, गोटा, पट्टी, स्टोन, दालिया, कटिंग, फोल्डिंग, स्टंपिंग, बॉक्स पेकिंग, पार्सल बरदान, लेंगिज, कुर्ती, गारमेंट्स, लहंगा, वेश, गाउन, शर्टिंग, स्कूल व कॉरपरेट योनिफॉर्म, खेस, झंडे आदि चुनाव […]


- वर्ष के प्रारम्भ में आशा, कोरोना के दस्तक से निराशा
- लॉक डाउन में हताशा व अनलॉक में दिलासा भरा रहा वातावरण
- सितम्बर-ऑक्टोबर में कहीं ‘घी घणा व कहीं मुट्ठी चणा’
- मुश्किल भरे दौर से गुजरे सूरत के कपड़ा व्यवसाही
- सितम्बर व ऑक्टोबर माह में प्रिंट साड़ियों ने जगाई आशा की किरण
27 ऑक्टोबर 2019 की दीपावली से वर्ष 2020 की दीपावली तक का दौर सिल्क सिटी सूरत के अधिकांश टेक्सटाइल्स उद्यमियों, व्यवसाहियों व इस कारोबार से जुड़े लाखों श्रमिकों, कर्मचारियों मुनीमों आदि के लिए आशा, निराशा, हताशा व अनलॉक में कुछ के हिस्से खुशियां आई और कुछ के हिस्से गम भरी स्थिति रही। इन मिश्रित हालातों में अनेक उद्यमी व व्यवसाही ऐसे भी हैं जिन्होंने आपदा को अवसर में बदलने का प्रयास किया और उनकी बल्ले बल्ले भी हो गई।
सूरत का टेक्सटाइल्स उद्योग अनेक विधाओं से भरा हुआ है जिसमें स्पिनिंग, टेक्च्युराजिंग, यार्न कारोबार, कपड़ा प्रोसेसिंग, एम्ब्रॉयडरी एंव वेल्यू एडेड वर्क, लेस, बॉर्डर, गोटा, पट्टी, स्टोन, दालिया, कटिंग, फोल्डिंग, स्टंपिंग, बॉक्स पेकिंग, पार्सल बरदान, लेंगिज, कुर्ती, गारमेंट्स, लहंगा, वेश, गाउन, शर्टिंग, स्कूल व कॉरपरेट योनिफॉर्म, खेस, झंडे आदि चुनाव सामग्री, मंडप क्लॉथ, देवी-देवताओं की आंगियों के वस्त्र, दुपट्टा, साड़ियां, ड्रेस मटेरियल्स, इंडस्ट्रीयल्स क्लॉथ, टेक्निकल टेक्सटाइल्स, शेलुन शॉप्स के बारबर्स आदि के उपयोगी कपड़े, होटल्स आदि के आगे लगने वाले विभिन्न रंगों के झंडा उपयोगी, सिल्क, नॉन वूवन, मास्क, पी पी ई किट्स,कलर केमिकल, लिग्नाइट्स आदि सैकड़ों किस्में हैं। ये इस टेक्सटाइल्स उद्योग के उपयोगी व इससे जुड़ी इण्डस्ट्रीज व कारोबार सूरत सहित सम्पूर्ण दक्षिण गुजरात में फैले व पनपे हुए हैं। तो आइए गत दीपावली से इस दीपावली तक के दौर के घटनाक्रम का सिंहावलोकन करते हैं।

यार्न उद्योग ने आसमानी तेजी मंदी देखी, अनलॉक काल में स्पिनरों ने सिंडिकेट बनाकर कमाया मन माफिक मुनाफा
सिल्क सिटी सूरत में आर्ट सिल्क या यूं कहें कि मेन मेड फाइबर आधारित उद्योग बड़े पैमाने पर पनपा हुआ है। ऋषि यार्न के प्रबंधक श्री राजेश सुराणा के अनुसार 27 ऑक्टोबर 2019 की दीपावली से 24 मार्च 2020 तक कोरोना मुक्त दौर तक सिंथेटिक यार्न कारोबार अच्छी तरह से चल रहा था। क्रूड की दरें घटी हुई होने से स्पिनरों व टेक्च्युराइजरों को मनवंचित मुनाफा भी अर्जित हो रहा था। त्योहारी व वैवाहिक सीजन चलने की उम्मीद में विवरों ने दीपावली छुट्टियां खुलने के बाद लगभग 15 नवम्बर से यार्न खरीदना प्रारम्भ कर दिया था। नवम्बर से मार्च तक कि कपड़े व गारमेंट में वैवाहिक सीजन अच्छी चल पड़ने से यार्न कारोबार गतिमान था। लेकिन भारत में कोरोना महामारी के दस्तक दे देने से 23 मार्च 2020 से 31 मई 2020 तक के दौर में केंद्र सरकार द्वारा लागू किए गए लोकडाउन के दौरान टेक्सटाइल्स मार्केट्स सम्पूर्ण रूप से बन्द रहने के कारण फेब्रिक्स व गारमेंट्स आदि का कारोबार पूरी तरह प्रभावित रहा। इस कारण स्पिनिंग, टेक्च्योराइजिंग, वीविंग उद्योग पूर्ण तया बंद रहा। परिणाम स्वरूप इन तमाम उद्योगों से जुड़े लाखों श्रमिकों को उत्तरप्रदेश, बिहार, झारखंड, उडीसा आदि राज्यों स्थित अपने गृह नगरों की और पलायन करना पड़ा। सम्पूर्ण भारत में सबसे ज्यादा श्रमिक स्पेशल ट्रेनें सूरत से चली। जब 1 जून 2020 को लॉक डाउन का दौर समाप्त होकर अनलॉक का वातावरण बना तो स्थानीय प्रशासन के कड़े नियम-कायदों के बीच टेक्सटाइल्स कारोबार पुनः प्रारम्भ हुआ व गाड़ी धीरे-धीरे पटरी पर आने लगी।

सुराणा के अनुसार जून-जुलाई व अगस्त तक तो यार्न कारोबार शिथिल सा रहा क्योंकि सूरत में कोरोना के बढ़ते प्रकोप व सूरत के हालातों से घबरा कर टेक्सटाइल्स मॉर्केटों में न तो देशावरी ग्राहकों की उपस्थिति रहती थी और ना ही श्रमिक पूरी तरह लौट पाए थे। अतः कपड़े में कमजोर मांग के चलते वीविंग इकाइयों में उत्पादन आधा-अधूरा आ पाता था तो यार्न की खपत भी इसी अनुसार होती थी। लेकिन सितम्बर व ऑक्टोबर माह में देश भर में कपड़ा ग्राहकी चलने लगी तथा ऑनलाइन कम्पनियों के कारोबार परवान पर चढ़ने लगा तो यार्न स्पिनरों के पास यार्न उपयोगी पीओवाय आदि कच्चे माल की मांग निकल आई और लॉकडाउन के दौरान उद्योग ठप्प रहने से लम्बा घाटा उठा चुके स्पिनरों ने रिलायन्स उद्योग की अगुआई में यार्न की बिना किसी वजह से मनमाफिक दरें बढ़ाई।

सुराणा बताते हैं कि इंटरनेशनल मार्केट्स में क्रूड आदि की दरों में कोई उछाल नही रहने के बावजूद स्पिनरों ने सिंडिकेट बना कर बेवजह यार्न बाजार को तेजी में झोंक दिया। और इस कृत्रिम तेजी के चलते मात्र सितम्बर व ऑक्टोबर माह की अवधि में यार्न प्रति किलो 25 से 30 रु तक उछाल खा गया। लॉकडाउन अवधि में जिस 150 ब्राइट एफडीवाय के 64 रु+ जीएसटी आदि चार्ज प्रतिकिलो की दरें थी, वो उछल कर 80 रु प्रति किलो पहुंच गया। इसी तरह 75 ब्राइट एफ डी वाय 70 से चढ कर 89 रु प्रति किलो तथा 150 ब्लेक रोटो प्रति किलो 75 से बढ़ कर 98 रु, 240/12 सेमी डल मदर यार्न 64 रु प्रति किलो की जगह 86 रु, अन्य 240/12 सेमी डल नायलॉन यार्न 140 रु प्रति किलो से बढ़ कर 175 रु बोले जा रहे हैं। हालांकि स्पिनरों के साथ साथ डीलरों, स्टॉकिस्टों, विक्रेताओं यार्न दलालों की भी दीपावली सुधर गई।

यार्न व्यवसायी)
टेक्च्युराइजिंग उद्योग से जुड़े श्री अरुण हरलालका के अनुसार रिलायन्स ग्रुप को देख अन्य स्पिनर भी सिंडिकेट बना कर यार्न बाजार को बिना किसी वजह के कृत्रिम तेजी की आग में झोंक दिया। यार्न कारोबार से ही जुड़े व्यवसायी श्री सुरेश बाफना के अनुसार बाजार में कपड़े की मांग खुलते ही यार्न में खरीदी निकल आई और इसे देख बाजार में तेजी पनपाने की ताक में बैठे स्पिनरों ने मनमानी भाववृद्धि कर डाली। बाफना के अनुसार यार्न के भाव जब घटे थे तो अब तक के न्यूनतम दर थे और जब बढ़ने लगे तो गत दीपावली में ग्राहकी के दिनों जो अधिकतम भाव थे वे वापस आ गए।
लॉक डाउन अवधि में असीमित नुकसान उठाया कपड़ा कारोबारियों ने – अरुण पाटोदिया
सिल्क सिटी मॉर्केट में पिछले 3 दशक से टेक्सटाइल्स आढ़त से जुड़े व प्रमुख गौ सेवक अरुण पाटोदिया के अनुसार गत वर्ष दीपावली से लेकर 24 मार्च 2020 को लॉकडाउन लगने का जो दौर था वो पोंगल त्योहार, क्रिसमस व वैवाहिक सीजन का दौर था। स्थानीय व्यवसाहियों ने अपनी क्षमता अनुसार व मांग के अनुरूप साड़ियां, ड्रेस मटेरियल्स, लहंगा, गाउन, वेश आदि फेब्रिक्स व कुर्ती, सलवार कमीज आदि गारमेंट चालान किया। हालांकि दिसम्बर 2019 में चीन के वुहान से पनपा कोरोना वायरस ने दुनिया के अनेक देशों में उन्हीं दिनों दस्तक दे दी थी। भारत में ये महामारी वुहान में पढ़ रहे केरला के कुछ छात्रों के जनवरी में भारत पहुंचने के साथ ही फेल गई थी। 24 ऑक्टोबर तक ये वायरस अपना पंजा भारत में काफी जगह फैला चुका था और केंद्र सरकार ने इस महामारी की गम्भीरता को देख 24 ऑक्टोबर 2020 से देश भर में लॉक डाउन लागू कर दिया। इसके साथ ही सारा जन जीवन अस्त व्यस्त हो गया। कारोबारी गतिविधियां थम गई लोग अपनी जान बचाने में जुट गए। अनेकों लोग 24 मार्च से 31 मई तक के लॉक डाउन भरे 67 दिनों में घरों में ही सिमटे रहे।

पाटोदिया बताते हैं कि मार्च दूसरे सप्ताह तक जो कपड़ा पार्सले देश भर में चालान हो चुकी थी, वो व्यापारियों के शहर तक ट्रांसपोर्ट गोडाउनों में पहुंच चुकी थी। जिन व्यापारियों के पास उस कपड़े की मांग थी तो उन्होंने अविलम्ब पार्सले छुड़ा दी लेकिन आगे ग्राहकी चलने की उम्मीद में जो पार्सले अग्रिम रूप से मंगा रखी थी उन पार्सलों को हमेशा की तरह ट्रांसपोर्ट गोडाउनो में ही पड़ा रखा व बिल्टीयां अपने पास। पार्सलें चालान करने वाले सूरत के कपड़ा व्यवसाही इस बात के लिए बेफिक्र थे कि उन्होंने व्यापारी की मांग के आधार पर कपड़ा चालान कर दिया और दूसरी ओर माल मंगाने वाला दिशावरी व्यापारी ट्रांसपोर्ट तक माल पहुंच जाने से सन्तोष व्यक्त कर रहा था। लेकिन मार्च तीसरे सप्ताह में जब कोरोना वायरस की गम्भीरता की खबरें आने लगी और 24 मार्च से देश भर में लॉकडाउन लागू हो गया तो सूरत से गंतव्य स्टेशन तक पहुंच चुकी कपड़े की पार्सलें ट्रांस्पोर्ट्स में ही धरी रहीं और लॉक डाउन के 67 दिन ही नहीं बल्कि अनलॉक भरे प्रारम्भ के 33 दिन भी शामिल कर दें तो तकरीबन उन 100 दिनों तक ये पार्सले ट्रांस्पोर्ट्स में पड़ी-पड़ी धूल चाटती रही। इन तीन महीनों में ट्रांस्पोर्ट्स में पड़ी पार्सलों की क्या विकृत स्थिति हो गई होगी ? चूहों, दीमक आदि ने कितना नुकसान पहुंचाया होगा ? इसकी तो सिर्फ कल्पना मात्र ही की जा सकती है। अब 100 दिनों बाद देशावरी व्यापारी ने पार्सले डिलीवरी ली या नही ली। अगर डिलीवरी ली तो किन शर्तों के साथ ली, ये सब माल चालानी करने वाले व्यापारियों के लिए खून के आंसू पीने जैसा दौर था। ये कल्पना ही की जा सकती है कि उन पार्सलों का क्या हश्र हुआ होगा। कारण टेक्नोलॉजी व नित्य बदलते इस फैशन के दौर में बीते कल वाली डिजाइन आज पुरानी हो जाती है तो तीन-चार महीनों तक गोडाउनो में पड़ी कपड़ा पार्सलों में पैक साड़ियों, ड्रेस मटेरियल्स आदि फेब्रिक्स व गारमेंट्स का क्या हुआ होगा?
पाटोदिया का मानना है कि 24 मार्च से 24 ऑक्टोबर के सात महीनों की अवधि में उन पार्सलों का पेमेंट अधिकांश व्यवसाहियों के पास नही पहुंच पाया हैं। यही नही 24 मार्च से एक-दो माह पहले भेजी गई कपड़ा पार्सलों का बकाया भुगतान भी हो पाया कि नही? निश्चित रूप से माल चालान करने वाले व्यवसाहियों ने इन मुद्दों को लेकर बहुत बड़ा समझौता किया होगा व बहुत बड़ा आर्थिक नुकसान भी भोगा होगा। कुल मिला कर गत दीपावली से इस दीपावली तक की अवधि अधिकांश कपड़ा व्यवसाहियों के लिए भारी नुकसान भरी रही हैं। गुडविल वाले व्यवसाहियों ने बेशक अपनी प्रतिष्ठा रखने का वजूद बरकरार रखा होगा व बिना बहाने बनाए व चालानी करने वाले व्यवसाहियों को बिना नुकसान पहुंचाए बकाया पेमेंट का भुगतान किया होगा लेकिन ऐसी प्रतिष्ठा रखने वाले व्यवसायी आखिर है कितने?

अनलॉक से स्थिति सुधरी लेकिन सितम्बर-ऑक्टोबर माह प्रिंट क्वलिटियों के उत्पादकों के लिए स्वर्णिम दिन साबित हुए
कपड़ा आढ़तिया श्री अरुण पाटोदिया के अनुसार 24 मार्च से 31 मई तक का दौर लॉक डाउन भरा होने से सम्पूर्ण रूप से तालाबंदी भरा ही दौर था। जून जुलाई व अगस्त माह में डाइड वेरायटी के लिए सर्वथा कमजोर व प्रिंट किस्मों के उत्पादकों के लिए उम्मीद जगाने भरे रहे। लेकिन सितम्बर ऑक्टोबर ये दोनों माह प्रिंट साड़ियों, ड्रेस मटेरियल्स उत्पादकों के लिए तो लॉटरी लग जाने जैसे ही साबित हुए। इस अवधि में प्रिंट साड़ियों में गजब की मांग खुली। स्थिति ये थी कि न कपड़ा प्रोसेसर मांग अनुसार कपड़ा प्रिंट कर देने की स्थिति में थे और ना ही ट्रेडर्स व उत्पादक इतनी व्यापक मांग की आपूर्ति करने की हालत में थे। यह कहा जा सकता है कि प्रिंट व्यवसाहियों व उत्पादकों के लिए कोरोना काल में लॉकडाउन अवधि में जो नुकसान पहुंचा उसकी भरपाई भी हो गई व भरपूर कमाई भी हो गई।
पाटोदिया बताते है कि यूं देखा जाए तो जहां लॉक डाउन भरे वातावरण के 67 दिनों में ग्रामीण अंचलों व शहरों में टीन एजर लड़कियों व युवतियों ने बरमुड़ा, टी शर्ट आदि पहने। वहीं परम्परागत ढंग से जीने वाली महिलाओं ने जहां नाइटी, कुर्ती, गाउन तथा उम्रदराज महिलाओं ने डेलीवियर साड़ियां पहनी। वहीं फैशनेबल महिलाओं ने बरमुड़ा, हाफ पैंट, आदि वेस्टर्न गारमेंट पहने। जब अनलॉक वातावरण हुआ तो महिलाओं-पुरुषों तमाम को कुछ शर्तो के साथ बाहर निकले की छूट मिली तो ग्रामीण महिलाओं ने प्रिंट साड़ियों के पहनावे को महत्व दिया व शहरों में भी उम्रदराज महिलाएं प्रिंट साड़ियाँ पहने दिखी।

पाटोदिया का कहना है कि डाइड साड़ियां अमूमन वेल्यू एडिशन वर्क के साथ बिकती हैं जो कि सगाई, विवाह, शादी, मकान मुहूर्त, मुंडन समारोह व अन्य सामाजिक धार्मिक फ़ंक्शनों में पहनी जाती हैं। अतः डेली वियर के कारण प्रिंट साड़ियाँ खूब बिकीं। पाटोदिया के अनुसार जून जुलाई अगस्त में प्रिंट साड़ियाँ व सलवार सूट आदि 25 से 50 प्रतिशत व सितम्बर-ऑक्टोबर माह में 100 प्रतिशत मांग रही। डाइड वैरायटियों में जून जुलाई व अगस्त माह में 5 से 10 प्रतिशत तथा सितम्बर-ऑक्टोबर में 50-60 प्रतिशत मांग देखी गई। जून-जुलाई-अगस्त में लासा-घाघरा, लहंगा-वेश आदि में 5 से 10 प्रतिशत लेवाली दिखी। जब अक्टूबर-नवम्बर में वैवाहिक सीजन ने जोर पकड़ा तो स्थानीय व दिशावरी व्यवसाहियों के पास अब तक का पड़ा लहंगे, ब्लाउज, वेश आदि का स्टॉक क्लियर हो गया, इससे व्यापारियों ने राहत की सांस ली।
पाटोदिया का कहना है कि शादियां प्रारम्भ में 50 व्यक्तियों की उपस्थिति में फिर 100 लोगो की उपस्थिति में और इन दिनों कुछ राज्यों में नियम व शर्तों के साथ 200 लोगों की उपस्थिति की छूट के साथ हो रही हैं। अतः वैवाहिक उपयोगी वेश, लहंगे, लासा आदि दूल्हे व दुल्हन के परिवार की महिलाओं द्वारा पहने तो जाते ही है, अतः यह मांग तो बरकरार रही। शादियां सस्ते व कम खर्च में निपट जाने से गरीब व विशेष कर मध्यम वर्गीय परिवारों की तो मन मांगी मुराद ही पूरी हो गई। अतः शादियों की सीजन उल्टी भरपूर रही। हाँ, शादी-विवाह में उपस्थिति पर सीमित संख्या की अनुमति से जो अतिथि व रिश्तेदार आदि शामिल हो पाते थे और अब वे इन वैवाहिक कार्यक्रमों में अपनी उपस्थिति दर्ज नही करा रहे हैं तो वेडिंग साड़ियां आदि की बिक्री पर अलबत्ता असर पड़ा हैं। पाटोदिया के अनुसार जैसे ही कपड़े में मांग खुली तो सूरत के कपड़ा उत्पादकों ने उन खरीददारों को ही अपने उत्पादों की आपूर्ति की जिन्होंने पुराना बकाया भुगतान चुका दिया हो। ऐसे में काफी व्यापारी लाइन पर आए व सुधर गए तो कुछ देशावरी व्यवसाहियों ने दूसरी दुकानों से नगद में कपड़ा खरीद कर वैवाहिक सीजन को भुनाया। कुछ देशावरी व्यापारियों ने अपने शहर या राज्य के थोक व्यापारियों से जरूरत अनुसार साड़ियाँ व फेब्रिक्स तथा गारमेंट आदि खरीद कर काम चलाया।
पाटोदिया का मानना है कि व्यापारी अब दीपावली सीजन के अनुरूप माल की आपूर्ति कर चुके है, आगे अब आंध्रा व तेलंगाना आदि दक्षिणी राज्यों में पोंगल की सीजन की तैयारी में लगे है, हालांकि कोरोना का असर बने रहने से सरकारी पाबंदियों के साथ तीज त्योहार आदि मनाए जाते है इस कारण सीजन का 25 प्रतिशत भी कारोबार होना मुश्किल है, पाटोदिया के अनुसार देश भर में मानसून मेहरबान रहने से बारिश संतोषप्रद रही इस कारण वर्ष 2021 में ग्राहकी चलने की उम्मीद जगी है लेकिन कोरोना का प्रकोप अभी भी बना हुआ है, प्रतिदिन 40-50 हजार केस अभी भी आ रहे हैं। कोरोना वैक्सीन फरवरी 2021 में आने के दावे किए जा रहे हैं। दूसरी और सेकेंड वेव (दूसरी लहर) चलने की बात कर डराया जा रहा है, यह भी आशंका व्यक्त की जा रही है कि सर्दियों में कोरोना का वायरस और भी भयावह हो सकता है अतः सूरत ही नही बल्कि देश व दुनिया के लोग डरे व सहमे हुए है व्यापारी बहुत ही सावधानी से कदम उठा रहे हैं, उन्होंने पिछले सात माह में बहुत कुछ खो दिया हैं। पता नही कब क्या घट जाए?
सलवार-सूट का कारोबार घट कर रह गया 10-15 प्रतिशत, 12-14 माह से अटका पड़ा है दक्षिण भारत के राज्यों के व्यापारियों का पेमेंट – नरेश मेहता
सूरत में सलवार सूट के कारोबार से जुड़े जसोल जिला बाड़मेर के युवा व्यवसाही व मिजाज से साहित्यकार नरेश मेहता का कहना है कि सलवार-सूट आधारित फेब्रिक्स का कभी सूरत में कारोबार परवान पर रहता था। लेकिन इस पूरे कोरोना काल में ये व्यापार सिमट कर 10-15 प्रतिशत तक रह गया हैं। इस कारण 5-6 माह में बकाया भुगतान चुकाने वाले साउथ के व्यापारी अब 13-14 माह पहले बकाया राशि चुका नहीं पा रहे हैं। मेहता का कहना है कि सलवार सूट न चलने के पीछे एक बड़ा कारण है कि लॉक डाउन व अनलॉक भरे इन सात महीनों में महिलाओं का घर से बाहर निकलना बहुत कम हो पाया। जो नोकरी पेशा महिलाएं थी वे वर्क फ्रॉम होम की थ्योरी पर घर बैठे ही अपने कार्यों को अंजाम देती थी। इस कारण जहां टीन एजर लड़कियों व युवतियों ने बरमुड़ा-टी शर्ट आदि का पहनावा अपनाया वहीं गृहणियों ने कोटन नाइटी, गाउन आदि को प्राथमिकता दी। इस कारण बालोतरा, पाली, अहमदाबाद, सांगानेर, जेतपुर आदि मंडियों के कॉटन प्रिंट फेब्रिक्स थोक में बिके और वहां का कारोबार इस कोरोना काल में भी धमधमाने लगा। यही वजह है कि सलवार सूट के कई व्यवसाहियों ने लाइन चेंज कर गारमेंट्स उपयोगी रेयान के व्यवसाय से नाता जोड़ दिया हैं। रेडीमेड गारमेंट उपयोगी रेयान का ग्रे कपड़ा इरोड़ तमिलनाडु से चालान होता हैं। इस रेयान पर प्रिंट इन चार शहरों में होती है, जोधपुर, सांगानेर (जयपुर) अहमदाबाद व सूरत में। जोधपुर का प्रिंट 40 रु, सांगानेर का प्रिंट 40-45, अहमदाबाद के प्रिंट 55-60 रु तथा सूरत का प्रिंट 60 से 80 रु प्रति मीटर में बिकता है।

मेहता के अनुसार ये रेयान प्रिंट उल्हासनगर, गांधीनगर (दिल्ली) कोलकोता, पंजाब, जबलपुर, कटनी आदि गारमेंट उत्पादक मंडियों में आपूर्ति किया जाता है। ये रेयान फेब्रिक्स कुर्तियां, वेस्टर्न आउट फिट आदि में उपयोग लिए जाते हैं। रेयान इरोड़ से 12, 14 तथा 17-18 किलो प्रति थान 44 पन्ना व बड़े पन्ने में बिकता हैं। मेहता के अनुसार सूरत में दुपट्टा उद्योग प्रगति के पथ पर अग्रसर है। दुपट्टा हिन्दू-मुस्लिम, सिख, ईसाई आदि तमाम जाति धर्म मजहब यानी सभी वर्ग की युवतियों व महिलाओं द्वारा उपयोग में लिया जाता हैं। दुपट्टो की विशाल रेंज 25 रु से 1000 रु तक में बिकती हैं। दुपट्टा पाकिस्तान, बांग्लादेश, दुबई, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब, अफ्रीका, मालदीव,श्रीलंका आदि देशों में भी दुपट्टा बिकता हैं।
मेहता के अनुसार वैवाहिक सीजन में लहंगा व फैंसी गाउन खूब बिके, नेट व जॉर्जट आधारित लहंगे व गाउन विवाह-शादी तथा विभिन्न फ़ंक्शनों में पहने जाते हैं। कोरोना काल में बढ़ी बेरोजगारी से अब पहले की बजाय कम कीमत के लहंगे तथा गाउन बिकते है। मेहता के अनुसार इन दिनों 4000-5000 की बजाय 2500 रु तक के गाउन पसन्द किए जा रहे है व 15 हजार की जगह 2 से 6 हजार तक के लहंगे व वेश बिक रहे हैं।
(लेखक गणपति भनसाली की कलम से कपड़ा बाजार समीक्षा के भाग-2 के लिये पढ़ते रहें लोकतेज)