जानें, रण के अगियारों में काम करने वाले मजदूरों को अग्निदाह के बाद भी दफनाना क्यों पड़ता है?
नमक हमारे भोजन का एक अभिन्न अंग है। यदि हमारे भोजन में नमक ना हो तो भोजन का सारा स्वाद ही उड़ जाता है। पर क्या आपको मालूम है की यह नमक कैसे आता है और नमक उत्पादित करने वाले मजदूर किस परिस्थिति में जी रहे है। भारत में कुल नमक उत्पादन का 70 प्रतिशत मात्र गुजरात में ही उत्पादित होता है। जिसमे भी 35 प्रतिशत तो झालावाड़, हलवाड़, कूड़ा, खारा घोढ़ा, पा ट डी और झिंझुवाडा के रेगिस्तान में ही होता है। यहां मजदूर झोंपड़ी बनाकर रहते है। दिन रात लगातार नमक पकाने के लिए उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। लगातार 12 से 15 घंटे पानी में रहने के कारण उन्हें कई तरह की चमड़ी की बीमारियों से ग्रसित होना पड़ता है। इसके अलावा नमक वाले पानी में ज्यादा समय तक रहने के कारण उनके पैर भी संवेदनहीन हो जाते है। लगातार नमक वाले पानी में रहने का परिणाम इन्हे अपनी मृत्यु के बाद भी परेशान करता है। नमक वाले पानी में रहने के वजह से उनके पैर की चमड़ी शुष्क हो जाती है। जिसके कारण अग्नीदाह देने के […]

नमक हमारे भोजन का एक अभिन्न अंग है। यदि हमारे भोजन में नमक ना हो तो भोजन का सारा स्वाद ही उड़ जाता है। पर क्या आपको मालूम है की यह नमक कैसे आता है और नमक उत्पादित करने वाले मजदूर किस परिस्थिति में जी रहे है।
भारत में कुल नमक उत्पादन का 70 प्रतिशत मात्र गुजरात में ही उत्पादित होता है। जिसमे भी 35 प्रतिशत तो झालावाड़, हलवाड़, कूड़ा, खारा घोढ़ा, पा ट डी और झिंझुवाडा के रेगिस्तान में ही होता है। यहां मजदूर झोंपड़ी बनाकर रहते है। दिन रात लगातार नमक पकाने के लिए उन्हें मेहनत करनी पड़ती है। लगातार 12 से 15 घंटे पानी में रहने के कारण उन्हें कई तरह की चमड़ी की बीमारियों से ग्रसित होना पड़ता है। इसके अलावा नमक वाले पानी में ज्यादा समय तक रहने के कारण उनके पैर भी संवेदनहीन हो जाते है।

लगातार नमक वाले पानी में रहने का परिणाम इन्हे अपनी मृत्यु के बाद भी परेशान करता है। नमक वाले पानी में रहने के वजह से उनके पैर की चमड़ी शुष्क हो जाती है। जिसके कारण अग्नीदाह देने के बाद भी उनके पैर जलते नहीं है। समग्र देश में मात्र अगरियों के समुदाय में ही अग्निदाह और दफनाने की विधि की जाती है।
आम तौर पर एक सामान्य मनुष्य के शरीर को जलने के लिए डेढ़ से दो घंटे लगते है। पर नमक का काम करने वाले मजदूर के शरीर को जलने के लिए चार घंटे का समय लगता है। इतना ही नहीं जहां आम इंसान के पार्थिव शरीर के लिए 10 से 12 मन लकड़ी की जरूरत पड़ती है वहीं नमक के मजदूर के तौर पर काम करने वाले व्यक्ति के पार्थिव शरीर के लिए 15 से 17 मन लकड़ी की जरूरत पड़ती है।
हालांकि यदि योग्य समय पर मेडिकल चेकअप कराया जाए और काम के समय उपयुक्त साधन दिए जाए तो उन्हें इस तरह की परेशानी से बचाया जा सकता है। पर ज्यादातर गरीबी में अपना जीवन बिताने वाले इन मजदूरों के लिए वह संभव नहीं हो पाता।