अमरेली : दीवाली की रात को खेला गया सावरकुंडला में प्रसिद्ध इंगोकिया युद्ध
अमरेली के सावरकुंडला में पिछले 60 सालों से खेली जा रहे इंगोकिया युद्ध के नजारे इस दीवाली में भी देखने मिले थे। स्थानिको के साथ साथ विदेशियों में भी आकर्षण का केंद्र बने इस युद्ध को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है। इस खेल में एक चीकू जैसे फल ने लोग एक महीने पहले से ही दारुगोला, गंधक और कोयला भरकर उसे सूखा लेते है। इसके बाद इसे थैली में भरकर रॉकेट की तरह उसे एक दूसरे पर फेंकते है। हालांकि यह खेल थोड़ा खतरनाक होता है, जिसके चलते खेल को दौरान कोई अनहोनी ना हो इस लिए स्थानिक पुलिस तंत्र की भी बंदोबस्त रहती है। एक स्थानिक के अनुसार, पहले यह खेल सावर और कुंडला के बीच खेला जाता था। पर अब शहर के अलग अलग चौराहे पर इसे खेला जाता है। कोरोना के मुश्किल समय में भी कड़ी सावधानी के साथ लोगों ने इस खेल को खेलकर अपनी परंपरा बरकरार रखी थी।

अमरेली के सावरकुंडला में पिछले 60 सालों से खेली जा रहे इंगोकिया युद्ध के नजारे इस दीवाली में भी देखने मिले थे। स्थानिको के साथ साथ विदेशियों में भी आकर्षण का केंद्र बने इस युद्ध को देखने के लिए दूर दूर से लोग आते है।
इस खेल में एक चीकू जैसे फल ने लोग एक महीने पहले से ही दारुगोला, गंधक और कोयला भरकर उसे सूखा लेते है। इसके बाद इसे थैली में भरकर रॉकेट की तरह उसे एक दूसरे पर फेंकते है। हालांकि यह खेल थोड़ा खतरनाक होता है, जिसके चलते खेल को दौरान कोई अनहोनी ना हो इस लिए स्थानिक पुलिस तंत्र की भी बंदोबस्त रहती है।
एक स्थानिक के अनुसार, पहले यह खेल सावर और कुंडला के बीच खेला जाता था। पर अब शहर के अलग अलग चौराहे पर इसे खेला जाता है। कोरोना के मुश्किल समय में भी कड़ी सावधानी के साथ लोगों ने इस खेल को खेलकर अपनी परंपरा बरकरार रखी थी।