अमृतसर ट्रेन दुखान्तिका : आखिर रेल ट्रैक के समीप ऐसे विशाल आयोजनों की इजाजत ही क्यों दी जाती हैं ?
गणपत भंसाली (सूरत) पंजाब के अमृतसर में आज रेल ट्रैक पर खड़े रावण देखते लोगों पर ट्रेन चढ़ गई और 50 से ज्यादा बच्चे व बड़े मौत के मुंह मे समा गए। बताया जाता है कि ट्रेन तीव्र गति से जालंधर से अमृतसर की ओर जा रही थी, तथा दूसरी ओर से भी एक ट्रेन आ रही थी। यह दुःखद हादसा अमृतसर शहर के बीचो-बीच जोड़ा फाटक के समीप हुआ। सूत्रों के अनुसार पटाखों के शोर से ट्रेक पर खड़े बच्चे व बड़े ट्रेन की आवाज नहीं सुन पाए। इस हादसे में जहां रेल चालक की लापरवाही नजर आ रही है, वहीं स्थानीय पुलिस-प्रशासन भी सर्वाधिक दोषी है। क्या रेलवे ट्रेक के निकट रावण जलाते समय प्रशासन को सतर्कता नही बरतनी चाहिए थी ? क्या रावण दहन देख रहे लोगों को ट्रैक से दूर नही जा सकता था ? आखिर रेल ट्रैक के निकट रावण दहन करने की इजाजत दी ही क्यों जाती हैं ? यह मसला अकेले अमृतसर का नहीं है। दरअसल रेलवे ट्रेक, रियायसी बस्तियों, भीड़भाड़ वाले विस्तारों, स्कूल-कॉलेजों मैदानों के समीप के बजाय शहर से दूर खाली […]

गणपत भंसाली (सूरत)
पंजाब के अमृतसर में आज रेल ट्रैक पर खड़े रावण देखते लोगों पर ट्रेन चढ़ गई और 50 से ज्यादा बच्चे व बड़े मौत के मुंह मे समा गए। बताया जाता है कि ट्रेन तीव्र गति से जालंधर से अमृतसर की ओर जा रही थी, तथा दूसरी ओर से भी एक ट्रेन आ रही थी। यह दुःखद हादसा अमृतसर शहर के बीचो-बीच जोड़ा फाटक के समीप हुआ।
सूत्रों के अनुसार पटाखों के शोर से ट्रेक पर खड़े बच्चे व बड़े ट्रेन की आवाज नहीं सुन पाए। इस हादसे में जहां रेल चालक की लापरवाही नजर आ रही है, वहीं स्थानीय पुलिस-प्रशासन भी सर्वाधिक दोषी है। क्या रेलवे ट्रेक के निकट रावण जलाते समय प्रशासन को सतर्कता नही बरतनी चाहिए थी ? क्या रावण दहन देख रहे लोगों को ट्रैक से दूर नही जा सकता था ? आखिर रेल ट्रैक के निकट रावण दहन करने की इजाजत दी ही क्यों जाती हैं ?
यह मसला अकेले अमृतसर का नहीं है। दरअसल रेलवे ट्रेक, रियायसी बस्तियों, भीड़भाड़ वाले विस्तारों, स्कूल-कॉलेजों मैदानों के समीप के बजाय शहर से दूर खाली व विशाल मैदान में ऐसे कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए। आखिर प्रशासन व जनता ऐसे हादसों से सबक क्यों नहीं लेते?
अतीत में मंदिर परिसरों में, तीर्थ स्थलों में तथा अनेक सार्वजनिक स्थलों पर इस तरह की दुर्घटनाएं घटती रही हैं व हर हादसे में अगिनित लोग अपनी जान गंवाते रहे हैं। राज्य सरकारें व विभिन्न शहरों-कस्बों के स्थानीय प्रशासन इस हादसे से सबक लेते हुए रेल ट्रेकों, बस स्टैंडों, शहरी या ग्रामीण सीमा में रियायसी बस्तियों के समीप रावण दहन तथा अन्य बड़े सार्वजनिक आयोजनों पर अविलम्ब रोक लगाएं। सरकारें इस तरह के हादसों पर तत्काल मुआवजों की घोषणा तो कर देती हैं, लेकिन जिनके घर का चिराग बुझ गया क्या इन मुहावजों से मृतक की जिंदगी वापस मिल पाएगी?
जनता-जनार्दन में भी जन चेतना की आवश्यकता है। अकेले रावण दहन के समय ट्रेक पर ऐसी दुर्घटनाएं घटित हुई हों ऐसी बात नहीं, बल्कि ट्रेक पर शोच जाते समय, रेल पटरियां पार करते समय, तथा कान में इयरफोन लगा कर ट्रेक पार करते हुए अनेक लोग अपनी जान गंवा बैठे हैं। सूरत में भी ट्रेकों पर लापरवाही बरतने से अनेकों लोग अपनी ईहलीला समाप्त कर चुके हैं। समाज सेवी संगठनों को भी ऐसे बड़े त्योहारों तथा आयोजनों के दौरान लोगों में जन-जाग्रति पैदा करनी चाहिए, ताकि ऐसे हादसों से बचा जा सके।
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मौलिक विचा