झारखंड मत्स्य उत्पादन में बन रहा आत्मनिर्भर, दो लाख मीट्रिक टन हुआ मछली उत्पादन
1200 करोड़ मत्स्य बीज उत्पादन का लक्ष्य
रांची, 30 दिसंबर (हि.स.)। राज्य मछली पालन के क्षेत्र में तरक्की कर रहा है। मत्स्य उत्पादन का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां कुछ साल पहले तक यह राज्य मछली के लिए दूसरे राज्यों पर निर्भर था, वहीं अब यह दूसरे राज्यों को मछली के साथ साथ उसका बीज भी निर्यात कर रहा है। इस तरह से कहा जा सकता है कि मत्स्य उत्पादन के क्षेत्र में झारखंड आत्मनिर्भर हो रहा है।
राज्य में दो लाख मीट्रिक टन मछली उत्पादन हुआ है। बड़े जलाशयों में भी इस केज कल्चर का इस्तेमाल किया जा रहा है, जिससे मछली उत्पादन भी बढ़ा है। अब राज्य सरकार खाली पड़ी खदानों में भी मछली पालन करने की योजना पर काम कर रही है। मत्स्य विभाग ने 2023-24 के लिए मछली उत्पादन का लक्ष्य तीन लाख 30 हजार मीट्रिक टन रखा है। अब तक दो लाख लाख मीट्रिक टन मछली का उत्पादन किया जा चुका है। इसे मार्च 2024 तक हासिल करने का लक्ष्य है। इसे प्राप्त करने के लिए युवाओं को स्वरोजगार से जोड़ा जा रहा है। प्रशिक्षण के बाद 90 फीसदी सब्सिडी मत्स्य स्पॉन दिए जा रहे हैं। इसके दो हजार रुपये का फीड और मत्स्य बीज उत्पादन में इस्तेमाल होने वाला नेट भी निःशुल्क विभाग की ओर से उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
राज्य मत्स्य विभाग ने 1200 करोड़ मत्स्य बीज उत्पादन का लक्ष्य रखा है। इसके लिए साढ़े सात हजार प्रगतिशील युवा मत्स्य पालकों को मत्स्य बीज उत्पादन का विशेष प्रशिक्षण दिया जा चुका है। इसके तहत रांची में 382, खूंटी में 170, गुमला में 300, सिमडेगा में 210, लोहरदगा में 220, लातेहार में 260, पश्चिमी सिंहभूम में 358, पूर्वी सिंहभूम में 290, सरायकेला खरसावां में 420, दुमका में 280, जामताड़ा में 210, साहिबगंज में 210, पाकुड़ में 210, हजारीबाग में 470, रामगढ़ में 310, कोडरमा में 330, चतरा में 340, बोकारो में 410, गिरिडीह में 300, धनबाद में 385, गोड्डा में 325, पलामू में 370, गढ़वा में 320 और देवघर में 420 युवाओं को मत्स्य बीज उत्पादन का विशेष प्रशिक्षण दिया गया है।
रांची, गुमला, चाईबासा, हजारीबाग,चतरा, बोकारो, पलामू, दुमका, सिमडेगा गोड्डा, सरायकेला खरसावां और पाकुड़ में बंद पड़ी खदानों में मछली उत्पादन किया जाएगा। इस योजना में 8.15 करोड़ खर्च किए जाएंगे। इस योजना के तहत मुख्य तौर पर मछली पालन के लिए उपयुक्त खदानों में केज कल्चर के जरिए मछली पालन करने के लिए केज इंस्टॉल किए जाएंगे। साथ ही वहां पर मछली पालन के लिए इनपुट प्रदान किया जाएगा और पुराने केज की रिमॉडलिंग की जाएगी।