विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य चित्रकूट के पहाड़ों पर मौजूद हैं हजारों साल पुराने शैल चित्र

चित्रकूट ए कल्चरल हेरीटेज टीम को खोजा पाषाण कालीन शैलचित्र

विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य चित्रकूट के पहाड़ों पर मौजूद हैं हजारों साल पुराने शैल चित्र

चित्रकूट, 25 जुलाई (हि.स.)। विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य यूपी-एमपी के बीच बसे विश्व प्रसिद्ध पौराणिक तीर्थ चित्रकूट में एक बार फिर मानव सभ्यता से जुड़े प्राचीन साक्ष्य मिले हैं। जिला मुख्यालय से लगभग 50 किमी. दूर धारकुण्डी के जंगल में अनगिनत जगहों पर ये प्राचीन साक्ष्य मौजूद हैं। हजारों वर्ष पुराने चित्र , अघमर्षण कुंड से सटी पहाड़ी में चित्रकूट ए कल्चरल हेरीटेज की टीम को पाषाणकालीन शैलचित्र मिले हैं। चित्रों में विभिन्न प्रकार के पशुओं की अधिकता, अध्ययन से खुल सकते हैं।

मानव सभ्यता से जुड़े प्राचीन शैल चित्रों पर शोध व अध्ययन में जुटीे चित्रकूट ए कल्चरल हेरीटेज टीम के मुखिया अनुज हनुमत ने बताया कि टीम का उद्देश्य चित्रकूट में छिपे पौराणिक, ऐतिहासिक सिर सांस्कृतिक रहस्यों को खोजकर आम जनमानस के सामने लाना है। जिससे इन स्थलों को पर्यटन की मुख्य धारा से जोड़ा जा सके। उन्होंने कहा कि इन प्राचीन रहस्यों पर शोध हो, जिससे मानव सभ्यता से जुड़े इतिहास को बल मिल सके। उन्होंने बताया कि कुछ स्थानों पर कुछ साक्ष्य मिले हैं। जिसका अध्ययन कर उस पर रिसर्च करने के बाद सार्वजनिक किया जायेगा।

बता दें कि मानव सभ्यता के कई राज पूरे विश्व की प्राचीन मानव बस्तियों में से एक हैं। ऐसे शैलाश्रय चित्रकूट के पहाड़ों में आज भी गहरे राज छिपाये हुए हैं। पहले भी टीम पाठा क्षेत्र के सरहट, खाम्भा, चूल्ही, करपटिया, मऊ गुरदरी , बाड़ा बाबा और मऊ तहसील के ऋषियन और कोटरा में भी मौजूद शैलचित्रों को प्रकाश में ला चुकी है।

भीम बैठका और सरहट के शैलचित्रों में है काफी सामानत

गौरतलब हो कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम की तपोस्थली चित्रकूट की पावन धरती भारत के मानचित्र पर धार्मिक केंद्र के रूप में तो प्रसिद्ध ही थी लेकिन अब बड़े पुरातात्विक स्थलों के रूप में भी स्थान बनाने जा रही है । इसका सबूत है चित्रकूट की धरती पर भारतीय पुरातत्व विभाग के लगातार दो दौरे , जो आने वाले समय में निःसन्देह चित्रकूट के लिए ऐतिहासिक होंगे।

भारतीय पुरातत्व विभाग -नई दिल्ली के लगातार दो दौरों ने पर्यटन की संभावनाओं पर बुन्देलखण्ड को एक कदम और आगे लाकर खड़ा कर दिया है । भारतीय पुरात्तव विभाग की पहली टीम ने उपनिदेशक डॉ. आर सिन्हा के नेतृत्व में चित्रकूट जिले के मानिकपुर तहसील के सरहट स्थित पुरापाषाणकालीन शैलचित्रों का निरीक्षण किया। सरहट और उसके आस पास के स्थानों पर जो शैलचित्र पाये गये हैं वो भी हूबहू भीमबैठका के शैलचित्रों जैसे ही हैं। यानि कि भीमबैठका और सरहट के शैलचित्रों में काफी सामानता है। इस कारण ये भी हजारों साल पुरानी संस्कृति हुई। भीमबैठका के चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ और लाल रंग है।

चित्रकूट के शैल चित्रों की महत्ता

चट्टानों को देखकर यह प्रतीत होता है की पूर्वजों के हाथों और पैरों से घिसकर चिकना किया गया होगा और यहाँ चट्टानों का ऐसा चिकनापन प्रकृति के अपक्षय से नहीं हो सकता। सारी चट्टानें चीख चीख कर कह रही हैं की यहाँ एक मानव सभ्यता पनपी थी। प्राचीन इतिहास के शोध छात्रों को इसे अपने शोध का विषय बनाना चाहिए जिससे इससे जुड़े और भी राज खुल सकें। रस्सी की रगड़ से पत्थर पर निशान पड़ जाता है वैसे ही उन पूर्वजों के दैनिक कार्यों के कारण ये पूरा स्थल भी मानवकृत और चिकना हो गया है। ऐसे ही शैलचित्र भारत के मध्य प्रांत प्रान्त के रायसेन जिले में स्थित है। ये स्थान भीम बेटका के नाम से जाना जाता है। यह एक पुरापाषाणिक आवासीय पुरास्थल है। जो आदि मानव द्वारा बनाये गए शैल चित्रों और शैलाश्रयों के लिए प्रसिद्ध है। इन चित्रों को पुरापाषाण काल से मध्य पाषाण काल के समय का माना जाता है। ये भारत में मानव जीवन के प्राचीनतम चिह्न हैं।

हजारों साल पुरानी है संस्कृति

चित्रकूट का यह स्थान विन्ध्याचल की पहाड़ियों के निचले छोर पर हैं। सरहट और उसके आस पास के स्थानों पर जो शैलचित्र पाये गये हैं वो भी हूबहू भीमबैठका के शैलचित्रों जैसे ही हैं। यानि कि भीम बैठका और सरहट के शैलचित्रों में काफी समानता है। इस कारण ये भी हजारों साल पुरानी संस्कृति हुई। भीम बैठका के चित्रों में प्रयोग किये गए खनिज रंगों में मुख्य रूप से गेरुआ और लाल रंग है। सबसे आश्चर्य वाली बात ये है कि सरहट और उसके आस पास बने शैलचित्रों में भी बड़े पैमाने पर गेरुआ रंग ही प्रयोग हुआ है।

पाठा में पनपी एक बड़ी पुरापाषाणकालीन संस्कृति है

ये महज एक चित्र की कहानी नही है बल्कि ये पाठा में पनपी एक बड़ी पुरापाषाणकालीन संस्कृति है और जैसे सिंधु घाटी सभ्यता की खोज बहुत बाद में हुई लेकिन आज वह श्रेष्टतम मानव संस्कृतियों में से एक है। उसी प्रकार पाठा की ये संस्कृति भी तमाम रहस्य समेटे हुए है और समकालीन पाषाण संस्कृतियों में सबसे आगे निकल सकती है। इस पाठा संस्कृति के अवशेष इसलिए भी नष्ट हो सकते है क्योंकि इससे एक किमी दूर ही खनन माफियाओं द्वारा अवैध रूप से वोल्डरों का खनन जारी है। इसलिये सरकार इसे तुरन्त सरंक्षित क्षेत्र घोषित करें। वैसे इन शैल चित्रों के माध्यम से आने वाली पीढ़ी एक नई कला को जन्म दे सकती है। यह खोज युवा पीढ़ी की खोज है जिसने ये साबित कर दिया की किताबों में लिखे पुरातात्विक ध्वंसावशेष आज भी जीवित अवस्था में है।

शैल चित्रों को प्रशासन करेगा संरक्षित-अभिषेक आनंद

जिलाधिकारी अभिषेक आनंद का कहना है कि आदि तीर्थ चित्रकूट अनेक धार्मिक और पौराणिक महत्व की धरोहरों को समेटे हुए है।चित्रकूट में जो शिला लेख बरामद हुए है।उनके संरक्षण का हर संभव प्रयाय किये जायेगें। उन्होंने चित्रकूट ए कल्चरल हेरीटेज टीम के प्रयासों की सराहना की है। साथ ही पुरातत्व विभाग के अधिकारियों को शैल चित्रों को संरक्षित करने के निर्देश दिये हैं।