सहमति से बने शारीरिक संबंध में खटास आने के बाद महिलाओं द्वारा बलात्कार का आरोप लगाना गलत

सहमति से बने शारीरिक संबंध में खटास आने के बाद महिलाओं द्वारा बलात्कार का आरोप लगाना गलत

दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने दुष्कर्म के आरोपी को बरी किया

सर्वोच्च अदालत ने दुष्कर्म के एक आरोपी को बरी कर दिया है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने आरोपी को सात साल की सजा सुनाई थी। 

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार एक शादीशुदा महिला अपने तीन बच्चों और पति को 2009 में छोड़कर अपने प्रेमी नईम अहमद के साथ भाग गई। 2011 में महिला को नईम से एक बच्चा पैदा हुआ। महिला के कहे अनुसार नईम ने उससे शादी करने का वादा किया था, लेकिन वो ऐसा करने से बचता रहा। 2012 में महिला को पता चला कि नईम ने उससे झूठ बोला था और वह पहले से शादीशुदा था और उसके बच्चे भी हैं। 

महिला को ये सबकुछ पता होने के बाद भी वह नईम के साथ रहती रही और अपने पति से तलाक लेकर 2014 में अपने तीन बच्चों को उसी के पास छोड़ आई। नईम में अब भी शादी को टालता रहा। 2015 में महिला ने नईम के खिलाफ दुष्कर्म की शिकायत करवा दी। 

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सहमति से शारीरिक संबंध बनाने के बाद कपल के बीच अनबन होने पर दुष्कर्म का आरोप लगाना गलत (प्रतिकात्मक तस्वीर

 

दुष्कर्म की शिकायत पर दिल्ली हाईकोर्ट ने नईम को सात साल कैद ही सजा चुनाई। मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा। यहां महिला की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि निचली अदालत और उच्च न्यायालय ने सही निष्कर्ष निकाला था कि नईम ने शादी का वादा यौन संबंध बनाने की नियत से किया था। दूसरी ओर नईम के वकील राज चौधरी ने दलील पेश की कि महिला की ओर से मोटी रकम की मांग पूरी नहीं किये जाने पर बलात्कार की शिकायत दर्ज कराई गई। 

इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने नईम को बलात्कार के आरोपों से बरी कर दिया। अदालत ने कहा है कि कई कारणों से सहमति से बने शारीरिक संबंध में खटास आने के बाद अक्सर महिलाओं द्वारा बलात्कार का आरोप लगाया जाता है।